उद्यमेन हि सिध्यन्ति ------ न मनोरथैैः|
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सक्सेस मंत्र : उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
Last Modified: Wed, Jan 16 2019. 00:02 IST
success mantra
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
(अर्थात उद्यम से हि कार्य सफल होते हैं, ना कि मनोरथों से। ठीक उसी प्रकार सोए हुए शेर के मुख में हिरण नहीं आते।)
संस्कृति की ये पंक्तियां हम सभी ने स्कूल के दिनों में पढ़ी होंगी। ये उक्ति पुरानी जरूर है लेकिन इसका महत्व आज भी उतना ही है, जितना की एक हजार साल पहले था। हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जो भाग्य का रोना रोते रहते हैं और कठिन परिश्रम नहीं करते। किसी काम में सफल होने के लिए जरूरी प्रयास नहीं करते, शायद ऐसे ही व्यक्तियों के लिए ये पंक्तिया लिखी गई हैं।
लोग भाग्य और परिश्रम को अलग -अलग मानते हैं। इसीलिए ऐसी कहावत कहते फिरते हैं कि भाग्य में होगा तो सबकुछ मिल जाएगा और भाग्य में नहीं तो कुछ भी नहीं मिलेगा। ऐसे लोग किसी कार्य में परिश्रम करने से ज्यादा भाग्य के बारे में सोचते रहते हैं। उनको लगता है कि जब किस्मत पलटेगी तो उनकी जिंदगी एकाएक पलट जाएगी। लेकिन सच्चाई तो यह है कि ऐसे लोगें का आधा समय तो किस्मत के बारे में सोचने में ही निकल जाता है। जबकि मेहनत करने वाला व्यक्ति लगन के साथ परिश्रम करने से आगे निकल जाता है