CBSE BOARD XII, asked by dhurveysuraj770, 6 months ago

उद्यमिता की विभिन्न समस्याओं का वर्णन कीजिए​

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Answered by pp1272004
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Answer:

1. उद्यमी की प्रारम्भिक अवस्था की समस्या

  • प्रोजेक्ट बनाने की समस्या
  • प्रारंभिक पूँजी एकत्र करने की समस्या
  • औधोगिक क्षेत्र मे स्थान प्राप्त करने की समस्या
  • N.O.C. प्राप्त करने की समस्या
  • पारिवारिक पृष्ठभूमि की समस्या
  • कच्चे माल की समस्या
  • शक्तिकरण की समस्या
  • पंजीकरण की समस्या

2. उद्यम मे गति मिलने के बाद समस्याएं

  • पूंजी निर्माण की समस्या
  • श्रमिकों की समस्याएं
  • आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता की समस्या
  • उत्पादन की पूरानी तकनीक सम्बन्धी समस्या
  • भुगतान प्राप्त करने मे विलम्ब की समस्या
  • शासकीय नीतियों की समस्या
  • सामाजिक वातावरण के प्रति संचेतना की समस्या
  • पूंजी के सदुपयोग की समस्या
  • आर्थिक सत्ता के सामाजिक उपयोग की समस्या
  • सामाजिक लागतों को न्यूनतम रखने की समस्या
  • समय प्रबंध की समस्या
  • प्रबन्धकीय तथा प्रशासनिक समस्याएं
  • स्वामित्व की समस्याएं

Answered by payalchatterje
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Answer:

किसी भी देश में आर्थिक विकास की गति को बढ़ावा देने तथा व्यावसायिक समस्याओं का समाधान करने में उद्यमी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। वास्तव में उद्यमिता आर्थिक एक सामाजिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है। यह एक नये औद्योगिक समाज की रचना का मार्ग है। ऐसे में उद्यमी के द्वारा जो भी कार्य किये जाते हैं उसमें उद्यमी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनमें निम्नलिखित समस्याएँ प्रमुख हैं-

1.नवप्रवर्तन की समस्या- आज विश्व के लगभग सभी देश एक वैश्विक ग्राम की तरह हो गये हैं। इनमें वे कुछ देश जो पूँजी, तकनीक एवं नये आविष्कारों के मामले में सबसे आगे हैं जिन्हें विकसित देश कहा जाता है, अपने उत्पाद की नई श्रृंखला तुरन्त बाजार में ले आते हैं, लेकिन अल्पविकसित देश का उद्यमी इन उत्पादों की प्रतियोगिता के सामने ठहर ही नहीं पाता क्योंकि उसके पास नवीनतम तकनीक नहीं है व नवप्रवर्तन उसकी फितरत भी नहीं होती। अत: यह एक बड़ी समस्या उद्यमी के सामने होती है।

2.जोखिम प्रबन्धन की समस्या- उद्यमी का प्रमुख कार्य व्यावसायिक जोखिमों, अनिश्चितताओं, संकटों व विभिन्न हानियों की उचित प्रबन्ध व्यवस्था करना है। उद्यमी जोखिमों की प्रकृति एवं गम्भीरता के आधार पर जोखिम प्रबन्ध की उचित तकनीक का प्रबन्ध करता है। कई जोखिमों को उचित जागरुकता द्वारा रोका या टाला जा सकता है, कई जोखिमों का हस्तांतरण व बीमा करवाया जा सकता है। हमारे यहाँ अधिकांश उद्यम प्रकृति द्वारा प्रदत्त सामग्री अर्थात् कृषि एवं वनोपज पर निर्भर है तथा इन प्राकृतिक आपदाओं (अतिवृष्टि या अनावृष्टि) की जोखिम से बचना लगभग नामुमकिन होता है।

3.सूचनाओं के संग्रहण की समस्या- नवप्रवर्तन हमारे उद्यमी की पहली समस्या है एवं उसी से सम्बन्धित है यह समस्या। नवप्रवर्तन की प्रक्रिया के लिए नये तथ्यों, आँकड़ों व सूचनाओं का होना आवश्यक होता है। हमारा मौसम विभाग यदि भारी वर्षा की चेतावनी दे दे तो अगले पूरे सप्ताह तेज धूप निकलती है। हमारे यहाँ बाहर देशों के कितने लोग आकर अपना काम बनां जाते हैं। हमें दूसरे विकसित देशों से इसकी जानकारी मिलती है। इन सबका प्रभाव उद्यमी के कार्यों पर भी पड़ता है। उसे बाजार, दशाओं, उपभोक्ता प्रवृत्तियों, नये उत्पादों, व्यावसायिक परिवर्तनों व सरकारी नीतियों का ज्ञान होना चाहिए लेकिन नवीनतम् सूचना तकनीक के अभाव में वह इस ज्वलंत समस्या से जूझता रहता है।

4.नियोजित विस्तार की समस्या- उद्यमी को बाजार की माँग व सम्भावित लाभों की स्थिति को देखते हुए अपेन व्यवसाय का विस्तार भी करना होता है। किन्तु अनियोजित विस्तार न केवल संसाधनों के दुरुपयोग को बढ़ाता है, वरन् कई वित्तीय एवं प्रबन्धकीय समस्याओं को भी खड़ा कर देता है। अत: उद्यमिता की एक महत्वपूर्ण समस्या सम्भावित बिक्री, लागतों, प्रबन्ध कौशल, संगठनात्मक ढाँचे आदि का विवेकपूर्ण विश्लेषण करते हुये उद्यम के द्रुत विस्तार की योजना बनाने की होती है।

5.आर्थिक सत्ता के सामाजिक उपयोग की समस्या- उद्यमी अत्यधिक लाभ कमाकर समाज में अपनी आर्थिक सत्ता स्थापित कर सकता है। कई एकाधिकार की स्थिति में रहने वाले उद्यम उपभोक्ता का शोषण कर सकते हैं। किन्तु समाज की दृष्टि से व्यवसाय की आर्थिक सत्ता का समाज के हितों में ही उपभोग किया जाना चाहिये। वृहत् उद्यमों पर सामाजिक नियन्त्रण बनाये रखना आवश्यक होता है। स्वयं उद्यमी को समाज के हितों की पूर्ति करते हुए लाभ अर्जित करना होता है। यह लाभ व सेवा में उचित सामंजस्य की समस्या है।

6.समय प्रबन्ध की समस्या- उद्यमी को अपनी सम्पूर्ण क्रियाओं को नियोजित ढंग से चलाना आवश्यक होता है। समय पर माल को बाजार में लाना, समय पर उत्पादन करना, ग्राहकों को सही समय पर सुपुर्दगी देना तथा समस्त प्रबन्ध क्रियाओं को उचित समय पर निष्पादित करना आवश्यक होता है। अतः विभिन्न क्रिया-कलापों के लिए समय का उचित विभाजन अत्यन्त आवश्यक होता है। हमारे उद्यमी समय की कीमत पहचानकर उचित प्रबन्धन करने में प्रायः अक्षम साबित होते हैं।

7.सामाजिक नवप्रवर्तन की समस्या- एक उद्यमी समाज के संसाधनों, योग्यताओं, प्रबन्धकीय कौशल, तकनीकी अनुसन्धानों में सामाजिक चिन्तन को एक नयी दिशा प्रदान कर सकता है। उद्यमिता से ही समाज में नयी माँग, नयी इच्छाओं व नये उपभोग प्रारूपों को प्रोत्साहित करके परिवर्तन का वातावरण बनाया जा सकता है। हमारे देश में समाजों में परस्पर वैमष्यता व टकराव यह सामाजिक नवप्रवर्तन सम्भव नहीं होने देते हैं। जिस देश में आम चुनाव जाति एवं समाज के आधार पर होते हैं वहां उद्यमी कैसे सामाजिक नवप्रवर्तन की सोच सकता है।

8.उचित प्रशिक्षण की समस्या-आज के जटिल तकनीकी वातावरण में उद्यमी को व्यवसाय के अनेक पहलुओं से परिचित होना आवश्यक होता है। उसे व्यवसाय के प्रबन्धकीय, संगठनात्मक, संचालकीय, वित्तीय, तकनीकी व अन्य दूसरे पहलुओं का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी होता है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान परिवर्तनशील वातावरण में नवीनतम जानकारी का उचित प्रशिक्षण लिये बिना कोई भी उद्यमी अपनी संस्था को सफलता नहीं दिलवा सकता है। हमारे यहां बिना प्रशिक्षण के ही उद्यमी लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास करते रहते हैं।

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