उद्यमिता विकास कार्यक्रम से जन सामान्य के जीवन में सुधार किस प्रकार होता है?
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भारत की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप, खाधान्न की समस्या और बढ़ती महंगार्इ के कारण बड़े परिवारों का सुचारू रूप से पालन पोषण करना एक ही कमाउ आदमी के बस की बात नहीं रह गर्इ है। यदि ग्रामीण आंचल में झांके तो हम पाते हैं, कृषि में ग्रामीण युवाओं को वर्षभर काम नहीं मिल पाता जिसके फलस्वरूप उन्हें अद्र्धबेरोजगारी की समस्या का समाना करना पड़ता है। गाँव स्तर पर रोजगार की अनुपब्लधता की वजह से ग्रामीण युवा प्राय: गांव को छोड़ कर आस-पास के शहरों में रोजगार की तलाश में चले जाते हैं, जहाँ उन्हें कर्इ कठिनार्इयों का सामाना करना पड़ता है। बेरोजगारी की समस्या के निदान हेतु ज्यों-ज्यों दवा दी गर्इ मर्ज बढ़ता गया। बेरोजगारी आज इस स्तर हद तक बढ़ गर्इ की युवा वर्ग ऐसी नौकरी करने को मजबूर होते हैं जिसमें उनका शोषण एवं उनके साथ अन्याय होता है। फलत: उनमें कुंठायें घर कर जाती है। युवाओं की इस विवशता का लाभ असमाजिक तत्व उठाते हैं एवं अपराधवृतियुक्त माफिया समुह ऐसे युवाओं को अपने चक्र में फसा कर उन्हें भी अपराधी बना देते हैं। इस दल-दल में फसने के बाद युवाओं के लिए इससे निकलना असंभव होता है एवं अपराध की नारकीय जीवन में सांस लेने को विवश रहते हैं और हिंसा की दुनियाँ में किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार होकर इस दुनियां को अलविदा कर जाते हैं।
भारतीय युवाओं की नौकरी करने की जड़ मानसिकता रोजगार की समस्या को और विकराल बना दिया है। सभी को नौकरी मिलना असंभव है। इन विषम परिसिथतियों में एक ही रास्ता है जो की सारी समस्याओं का निदान कर सकता है, वह है उधमिता विकास। अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे युवावर्ग एक सफल उधमी का सपना संजोए और रोजगार के लिए दुसरों की ओर न देखे बलिक खुद दुसरों को रोजगार देने वाले बनें। इसके लिए युवावर्ग को तकनीकी क्षेत्र में आगे आकर दक्षता हासिल करना जरूरी है। तकनीकी क्षेत्रों में फल-सब्जी परिरक्षण एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। ग्रामीण तथा शहरी युवावर्ग इस क्षेत्र में प्रशिक्षणों द्वारा व्यवाहरिक ज्ञान व अनुभव प्राप्त करके खुद का रोजगार कर सकते हैं।