उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी | चली आ रही है फेन उगलती फन फैलाए व्यालों सी
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उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालों सी। चली आ रही फेंन उगलती, फेंन फैलाएं व्यालो सी। ' इस काव्य पंक्ति में लहरों को काल के समान भयानक बताया है, अर्थात यहाँ 'भय' नामक स्थायी भाव दृष्टव्य है। इसलिए यहाँ 'भयानक रस' है।
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