uttar audyogik samaj shabd se aap kya samajhte hain charcha kijiye
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औद्योगिक समाज की विशेषताऐंसंपादित करें
औद्योगिक समाज में उत्पादन कृषि के अलावा उद्योगों पर केन्द्रित होता है। यान्त्रिक शक्ति महत्वपूर्ण हो जाती है। यह पशु व श्रमशक्ति का स्थान ले लेती है।औद्योगिक समाज में रोजी और बेरोजगारी की समस्या अधिक होती है। औद्योगिक श्रमिकों के लिए कल्याणकारी सेवाऐं उपलब्ध कराने की प्रमुख समस्या होती है।शिक्षाविदों का प्रमुख लक्ष्य सामाजिक प्रगति हेतु नवीन सम्भावनाओं के सृजन के लिये परंपरागत रूढ़ियों को तोड़ना है। केवल साक्षरता ही नहीं अपितु यांत्रिक शिक्षा भी एक लक्ष्य होता है।सामाजिक नेतृत्व के क्षेत्र में एकतन्त्रवादी, सामन्तवादी के स्थान पर बहुतंत्रवादी समुदाय के हाथ में आ जाता है। इस नेतृत्व की आधारशिला नव अर्जित सम्पत्ति होती है। सघन प्रतियोगिता नेतृत्व की उर्जा के उत्पेरक व अभिव्यक्ति होती है।विश्वविद्यालय की स्थिति ज्ञान के भंडार के रूप में होती है, चाहे वह ज्ञान अप्रासंगिक ही क्यों न हो। ज्ञान ही समाहत होता है।सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के लिये अनेकों प्रकार की विचारधाराओं का उदय होता है।राजनैतिक सहयोगिता अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। निष्क्रिय जनसमूह को सक्रिय कर मताधिकार के लिये जाग्रत करना श्रमिक वर्ग के हितों के लिये संघर्ष, श्रमिक संगठनों की भूमिका आदि प्रमुख विशेषताऐं होती हैं
औद्योगिक समाज में उत्पादन कृषि के अलावा उद्योगों पर केन्द्रित होता है। यान्त्रिक शक्ति महत्वपूर्ण हो जाती है। यह पशु व श्रमशक्ति का स्थान ले लेती है।औद्योगिक समाज में रोजी और बेरोजगारी की समस्या अधिक होती है। औद्योगिक श्रमिकों के लिए कल्याणकारी सेवाऐं उपलब्ध कराने की प्रमुख समस्या होती है।शिक्षाविदों का प्रमुख लक्ष्य सामाजिक प्रगति हेतु नवीन सम्भावनाओं के सृजन के लिये परंपरागत रूढ़ियों को तोड़ना है। केवल साक्षरता ही नहीं अपितु यांत्रिक शिक्षा भी एक लक्ष्य होता है।सामाजिक नेतृत्व के क्षेत्र में एकतन्त्रवादी, सामन्तवादी के स्थान पर बहुतंत्रवादी समुदाय के हाथ में आ जाता है। इस नेतृत्व की आधारशिला नव अर्जित सम्पत्ति होती है। सघन प्रतियोगिता नेतृत्व की उर्जा के उत्पेरक व अभिव्यक्ति होती है।विश्वविद्यालय की स्थिति ज्ञान के भंडार के रूप में होती है, चाहे वह ज्ञान अप्रासंगिक ही क्यों न हो। ज्ञान ही समाहत होता है।सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के लिये अनेकों प्रकार की विचारधाराओं का उदय होता है।राजनैतिक सहयोगिता अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। निष्क्रिय जनसमूह को सक्रिय कर मताधिकार के लिये जाग्रत करना श्रमिक वर्ग के हितों के लिये संघर्ष, श्रमिक संगठनों की भूमिका आदि प्रमुख विशेषताऐं होती हैं
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