Hindi, asked by manojchauhan0233, 2 months ago

uttarakhand ki pramukh shilpkalanye

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Answered by Anonymous
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Explanation:

रिंगाल – यह उत्तराखंड के जनपदों (पिथौरागढ़, चमोली, अल्मोड़ा आदि) का प्रमुख हस्तशिल्प उद्योग है। रिंगाल से सूप, डाले या डलिया, टोकरी, कंडी, चटाई, मोस्टा आदि हस्तशिल्प वस्तुएं तैयार की जाती हैं। बांस – बांस से कंडी, डाले या डलिया, सूप, टोकरी आदि हस्तशिल्प वस्तुएं तैयार की जाती हैं।

Answered by tuhinadas568
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Answer:

उत्तर प्रदेश की कला व शिल्प न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | सिल्क साड़ियों से लेकर मिट्टी के बर्तन, कालीन बुनाई से लेकर चिकनकारी तक उत्तर प्रदेश सदैव हस्तशिल्प के मोर्चे पर अग्रणी रहा है | कुछ विशिष्ट क्षेत्र विशिष्ट कला एवं हस्तशिल्प के लिए जाने जाते हैं यथा :

लखनऊ की चिकनकारी – उत्तर प्रदेश

लखनऊ की चिकनकारी – उत्तर प्रदेश

कढ़ाई की इस कोमल कला का उद्गम नवाबों की नगरी में हुआ | इस कला का नाम फारसी भाषा के शब्द “चिकन” से लिया गया है जिसका अर्थ है “सुइयों के प्रयोग से गढ़ा गया कपड़ा” | पूर्व में यह एक दरबारी कला के रूप में उभरा परंतु कालांतर में कला प्रेमियों के उत्साही प्रयासों से इस कला को प्रसिद्धि मिली और यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक गतिविधि में परिवर्तित हो गई | चिकनकारी के विविध प्रकार यथा मूरी, लेरची, कीलकंगन तथा बखिया प्रचलन में हैं | इस कला का आकर्षण इसकी बारीकी, एकरूपता तथा सम्पूर्ण उत्कृष्टता साथ ही साथ सफ़ेद कपड़े पर सफ़ेद कढ़ाई में है |चिकनकारी रूपांकन में भवनों के मुगल वास्तुशिल्प डिज़ाइन से लेकर बेल (लेस) और पक्षियों से लेकर जानवरों तक की आकृतियाँ सम्मिलित हैं। चिकनकारी आम तौर पर साड़ी व कुर्ता पायजामा पर की जाती है तथा यह गर्मियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है |

वाराणसी का ज़री कार्य अथवा किंकाब

वाराणसी का ज़री कार्य अथवा किंकाब

वाराणसी में महीन रेशम अथवा सूती कपड़े से निर्मित साड़ी के पल्लू तथा सम्पूर्ण साड़ी पर सुनहरे तथा चांदी के रंग के धागों से उकेरे गए ज़री के कार्य का कोई सानी नहीं है | चांदी की पृष्ठभूमि पर सुनहरा धागा वैभव को परिभाषित करता है तथा “बूटीदार” व “जाल” पद्धति इसकी सुंदरता को और बढ़ा देती है | भारतीय नववधुओं में एक परिपाटी बन गई है कि उन्हें अपने विवाह परिधानों में कुछ बनारसी साड़ियाँ अवश्य चाहिए विशेषकर जो गहरे लाल रंग व सुनहरी ज़री वाली हों | इन ज़री डिज़ाइनों का मूल भाव जटिल पुष्प व पत्तों, कलगा तथा बेल की आकृतियाँ हैं व साड़ी के पल्लुओं और दुपट्टों में ऊपर की ओर उठी हुई पट्टियों की आकृति, जो “झालर” कहलाती है, का तंता प्रयोग किया जाता है | डिज़ाइन का मूल भाव कपड़ों की मज़बूती के अनुसार भिन्न भिन्न होता है |

प्रस्तर कला

प्रस्तर कला

भारत में पाषाण कला का केंद्र आगरा में है , जिसका सर्वोच्च उदाहरण ताज महल है | संगमरमर की पतली पट्टियों को तराश कर महीन जाली बनाना शिल्पकारों के लिए सर्वाधिक कठिन कार्य है | झब्बेदार झालरों जैसे किनारों वाले दर्पण के फ़्रेम, नक्काशीदार जंगले, प्याले, बगीचे के फ़र्नीचर इत्यादि संगमरमर के अन्य उत्पाद आगरा में उपलब्ध हैं | आगरा की अन्य विशेषता रंगीन व मूल्यवान पत्थरों को संगमरमर पर जड़ कर मोज़ैक की बहुलता बनाना है | आपके आगरा भ्रमण के दौरान खरीदा हुआ कोई सामान आपके घर लौटने के बाद आपको अपने आगरा सफ़र की सदैव याद दिलाता रहेगा |

कालीन

कालीन

फ़ारसी व अरबी कालीनों के बाद भदोही, शाहजहाँपुर व मिर्ज़ापुर में निर्मित हमारे स्थानीय कालीनों का वर्णन आता है | इस क्षेत्र की बड़ी जनसंख्या कालीन बुनाई के पेशे से जुड़ी हुई है | वनस्पतियों व पुष्पों, ताज महल, “केथरी वाला जाल” “जामाबाज़”, “कंधारी” इत्यादि के अनोखे डिज़ाइनों से युक्त इस उद्योग ने न केवल राष्ट्रीय बाज़ारों को आकर्षित करने में सफलता पाई है अपितु कुछ आकर्षक चीनी डिज़ाइनों के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भी स्वयं को स्थापित किया है |

पीतल के बर्तनों की कला

पीतल के बर्तनों की कला उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद शहर पीतल के बर्तनों की बड़ी मात्रा उत्पादित करता है | यह नगर तामचीनी चढ़ाने व बर्तनों पर जटिल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है | नक्काशी की दो विधाएँ यहाँ प्रचलित है जिनमें से एक जो “नकशी” कहलाती है वह टिन की सतह पर की जाती है जबकि दूसरी विधा को “खुदाई” कहा जाता है जो लाखीकृत पॉलिश विहीन पीतल पर की जाती है | “खुदाई” हेतु इस्पात की बनी हुई नुकीली पेंसिल का प्रयोग किया जाता है | पीतल की बनी हुई वस्तुओं में परंपरागत गमले, गणेश, हँसते हुए बुद्ध, स्टूल, ट्रे, तथा समकालीन सुंदर प्याले निर्मित किए जाते हैं | “नटराज” की मूर्ति पीतल की बनी वस्तुओं में सर्वाधिक आकर्षक है जिसे उपहार के रूप में दिया जाता है व एक सजावटी वस्तु के रूप में भी रखा जाता है |

काँच की वस्तुएँ

काँच की वस्तुएँ

फ़िरोजाबाद काँच की वस्तुओं का पर्यायवाची बन गया है | पहले यहाँ केवल काँच की चूड़ियाँ बनती थीं, परंतु जटिल मशीनों के प्रयोग द्वारा यहाँ काँच की वस्तुएँ पूर्ण रूपेण निर्मित की जाने लगीं | यहाँ की सम्पूर्ण जनसंख्या इस उद्योग में लिप्त हैं | वाराणसी काँच की बीड्स बनाने में विशेषज्ञ है और अपना बहुतायत उत्पाद निर्यात कर देता है | इसी प्रकारयहाँ काँच की पतली प्लेटें तैयार की जाती हैं जिन्हें बाद में छोटे छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है, जो “टिकलू” कहलाते हैं और जिन्हें महिलाएं अपने कपड़ों को अलंकृत करने में प्रयोग करती हैं | सहारनपुर में काँच के जटिल खिलौने निर्मित किए जाते हैं जिनमें रंगीन द्रव्य भरा जाता है, इस कला को “रचकोरा” कहा जाता है, तथा यहाँ हुक्का के माउथ पीस तैयार किए जाते हैं | बहुरंगी काँच की चूड़ियाँ प्रत्येक परिधान के साथ धारण करना राज्य में सर्वाधिक प्रयोग किए जाने वाला आभूषण है |

बर्तन

बर्तन

उत्तर प्रदेश में खुर्जा ने मिट्टी के बर्तनों की अपनी ही शैली विकसित की है | शिथिल व अनाकर्षक बर्तनों में रंगों का समायोजन करके खुर्जा ने इस कला को नया जीवन दिया है | इन बर्तनों में अपनी पृष्ठभूमि के साथ संयोजित रंग व डिज़ाइन हर उस व्यक्ति को आकर्षित कर सकते हैं जिसके पास सौन्दर्य बोध हो | खुर्जा के अतिरिक्त, रामपुर की सुराहियाँ मेरठ व हापुड़ के पानी के कंटेनरों के साथ पूरे देश में आकृति, डिज़ाइन, रंग व अत्यधिक गर्म दिनों में भी पानी को ठंडा रखने की अपनी क्षमता के कारण प्रसिद्ध हैं |

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