ऊ) बालक के विकास में माता-पिता का योगदान पर निबंध प्रतियोगिता
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✿माता-पिता केवल हमें जन्म देने वाले भर नहीं हैं वे हमारे जीवन में सब कुछ होते हैं. सनातन संस्कृति में माँ बाप के चरणों को स्वर्ग कहा गया हैं. हमारे समाज में बच्चें के जीवन में माता पिता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं. माँ को बच्चें की प्रथम गुरु अथवा शिक्षिका भी कहा जाता हैं, तथा परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला की संज्ञा दी जाती हैं. बच्चें के व्यक्तित्व की नींव परिवार में ही पड़ती हैं जहाँ से उसकी औपचारिक शिक्षा की शुरुआत हो जाती हैं. बालक के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया में सबसे बड़ा कारक उसके माता पिता एवं पारिवारिक प्रष्ठभूमि होती हैं जिसे वंशानुगत और वातावरण कहा जाता हैं
✿उदाहरण के लिए एक स्कूल की एक कक्षा में पढने वाले सभी बच्चों को एक ही अध्यापक द्वारा एक ही विषयवस्तु पढ़ाई जाती हैं, जबकि समझ विकसित करने उसे आत्मसात करने में बच्चों में एकसमान योग्यता भले ही न हो, मगर एक स्तर तक सभी में समानता होनी चाहिए. यहाँ दो बच्चों के बीच दिखने वाला अंतर बालक के माता पिता और परिवार के प्रभाव को दिखाता हैं.
✿जिन बालकों के माता पिता स्वयं शिक्षित एवं जागरूक होते हैं, वे घर पर बच्चें की शिक्षा के लिए समुचित प्रबंध एवं वातावरण उपलब्ध कराते हैं. बच्चा अपने एक दिन के समय का मात्र तीसरा भाग ही विद्यालय में व्यय करता हैं शेष अधिकतर समय वह घर में ही बिताता हैं, अतः यदि बच्चें के माता पिता बालक की शिक्षा के प्रति गम्भीर हैं तो यकीन उसके परिणामों में स्पष्ट फर्क देखने को मिलता हैं.
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tell me your age please