ऊचे कुल का जन्म था , जो करनी उच्च ना होई ।सुब्रत कलश सुरा भरा ,साधु निंदा सोई।
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भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।
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