Hindi, asked by rohitnayak75, 6 months ago

ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होई
सुबरन कलस सुरा भरा ,साधू निंदा सोई ।।​

Answers

Answered by guptavandana0409
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Answer:

कबीर की साखी अर्थ सहित:- पहले के समय में व्यक्ति को उसके कुल से बड़ा समझा जाता था, ना कि उसके कर्म और ज्ञान से। इसी वजह से कवि ने इन दोहों में हमें यह सन्देश दिया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कुल से नहीं बल्कि अपने कर्मो से बड़ा होता है।

जैसे, अगर एक सोने के मटके में मदिरा भरी हो, तो वह किसी साधु के लिए मूल्यहीन हो जाता है। सोना का बना होने पर भी उसका कोई महत्व नहीं रहता। ठीक वैसे ही, बड़े कुल में पैदा होने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति बुरे कर्म करे और दूसरों के परोपकार से जुड़े महान काम ना करे, तो वह बड़ा कहलाने लायक नहीं है। इसलिए हमें किसी मनुष्य को उसके कुल से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से पहचानना चाहिए।

Explanation:PLEASE MARK ME AS BRAINLIST

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