ऊंट गीदड़ मित्रता गन्ने का खेत गीदड़ चिल्लाना रखवाला डंडा पिटाईस्पीक इन मुद्दों पर कहानी लिखिए
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Answer:. || जैसी करनी वैसी भरनी ||
एक बड़े से जंगल में एक ऊंट और गीदड़ रहता था। और उस जंगल के पास ही गन्ने का एक खेत था। लेकिन खेत और जंगल के बीच एक नदी पड़ती थी। एक दिन, दोनों ने यह फैसला किया की दोनों नदी पार करके गन्ने खाने जायेंगे। तो दोनों गन्ने की खेत की और चल पड़े।
जैसी ही दोनों नदी के पास पहुंचे गीदड़ बोला, “ऊंट भाई, तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठालो, ताकि मैं भी नदी पर कर सकू | गीदड़ की बात सुनकर ऊंट ने कहा, “हाँ गीदड़ भाई बैठ जाओ, कोई दिक्कत नहीं। मैं तुम्हे अपनी पीठ पर बैठा लूंगा।”
गीदड़ ऊंट की पीठ पर बैठ गया।
थोड़ी ही देर में दोनों ने नदी पर कर ली और खेत में पहुंच गए। जैसी ही दोनों खेत में पहुंचे, तो उन्हें बड़े मीठे मीठे गन्ने खाने को मिल गए। दोनों मजे से गन्ने खाने लग गए।
थोड़ी देर बाद गीदड़ का पेट भर गया। और वह गाना गाने लग गया। यह देखकर ऊंट ने उसे गाना गाने को मना किया। गीदड़ ने उसकी बात नहीं सुनी और वह कहने लगा, “क्या करूँ ऊंट भाई? खाना खाने के बाद मैं गाना जरूर गाता हूँ।”
यह कहकर गीदड़ फिर से गाने लगा। यह देखकर ऊंट परेशान हो गया। और कहा, “अगर तुम ऐसे ही चिल्लाते रहे तो खेत का मालिक आ जायेगा। और हमारी बहुत पिटाई होगी।” लेकिन गीदड़ चुप नहीं हुआ। वह गाना गाता ही गया।
उसी वक्त गीदड़ की आवाज सुनकर खेत का मालिक आ गया। खेत के मालिक को आता देखकर गीदड़ झाड़ियों के पीछे छुप गया। और ऊंट बेचारा पिट गया। क्योंकी वह इतना ऊँचा और लम्बा था की उसके लिए छुपना ना मुमकिन था।
अब जब दोनों जंगल वापस जाने के लिए नदी के पास पहुंचे तो गीदड़ ऊंट के पास आया और बोला, “ऊंट भाई, अपनी पीठ पर बिठालो। नदी बहुत गहरी है।” ऊंट ने उस वक़्त तो कुछ भी नहीं कहा। उसने बोला, “हाँ बैठ जाओ।” ऊंट गीदड़ को सबक सिखाना चाहता था। गीदड़ ऊंट के पीठ पर बैठ गया।
थोड़ी दूर आगे जा कर जब ऊंट नदी के बीच पहुंचा तो उसने जान- बुझके नदी में डुबकी ले ली। गीदड़ ने उसे ऐसा नहीं करने के लिए कहा, “गीदड़ भाई, अक्सर भोजन करने के बाद हमेशा मेरे साथ ऐसा होता है। खाना ही हजम नहीं होता है, क्या करूँ? मेरी आदत है।” यह कहकर ऊंट ने दूसरी डुबकी लगाई। गीदड़ डर गया। और कहता रहा की ऐसा मत करो।
अब ऊंट की बारी थी। इसलिए उसने भी गीदड़ की बात नहीं सुनी और नदी में डुबकी लगाता गया। फिर गीदड़ ऊंट की पीठ से फिसल गया और गहरे नदी में गिर गया। गीदड़ नदी में डूब रहा था और उसे अपनी गलती का एहसास हो गया।
शिक्षा – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि “हमे सबके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। क्योकी हम जैसा करेंगे वैसे ही हमें लोग मिलेंगे। जैसी करनी वैसी भरनी।”
एक बार की बात है एक ऊँट और एक सियार की गहरी दोस्ती थी।
- दोनों हमेशा साथ रहते थे और अक्सर एक नदी के किनारे पानी पीने आते थे।
- नदी के उस पार खरबूजों का एक खेत था।
- खरबूजे की दूरी देखकर उनके मुंह में पानी भर आया।
- एक दिन उन्होंने खरबूजे खाने का निश्चय किया कि नदी में पानी का बहाव बहुत तेज था।
- सियार के लिए तैर कर नदी पार करना संभव नहीं था इसलिए ऊंट की ऊँची पीठ पर बैठ जाता है और दोनों उसे पार करके नदी के दूसरे किनारे पर पहुँच जाते हैं।
- अब उनके ठीक सामने खरबूजों का खेत था। दोनों उत्साहित होकर खेत में दाखिल हुए और खरबूजे खाने लगे।
- जब सियार ने अपना पेट भरने के लिए पर्याप्त खा लिया तो वह खेत के कोने में चला गया, वहाँ बैठ गया और जोर-जोर से कराहने लगा।
- ऊंट अभी खरबूजे खा रहा था। उसने सियार को गरजने से मना किया लेकिन सियार ने ऐसा करना बंद नहीं किया और ऊंट से कहा: "खाने के बाद चिल्लाना मेरी आदत है।
- " इस बीच खेत का मालिक गीदड़ की आवाज सुनकर अपनी छड़ी के साथ वहां दिखाई दिया। जब उसने देखा कि ऊँट और सियार एक साथ खेत को खराब कर रहे हैं, वह क्रोधित हो गया।
- उस समय सियार भाग गया और एक बड़ी झाड़ी के पीछे छिप गया लेकिन ऊंट अपनी लंबी ऊंचाई के कारण खुद को छिपाने में असफल रहा।
- फिर क्या था! का मालिक खेत ने ऊंट को अपनी छड़ी से बहुत पीटा। वहाँ झाड़ी के पीछे सियार यह सब देखकर बहुत खुश हो गया।
- ऊंट सियार के कृत्य पर बहुत क्रोधित हुआ लेकिन उसने धैर्य के साथ उसे सहन किया। जब मालिक लौटा तो दोनों दोस्त एक साथ मिले नदी का किनारा।