Hindi, asked by Sahil2dracula, 1 year ago

ऊचा पद प्रापत करने के लिए ऊचे मूल्यों की आवश्यकता है

Answers

Answered by sachinsaini2225
1

मनुष्य के जीवन का लक्ष्य होता है स्व-प्रत्यक्षीकरण व स्व-योग को प्राप्त करें। जब वह जीवन का विश्लेषण और गुण-दोष का विवेचन करता है तो अपने जीवन-मूल्यों की तलाश करता है। पाइथागौरस न कहा था ‘‘संसार में एक मनुष्य ही मस्तिष्क, हृदय और भावना से युक्त प्राणी है और सभी वस्तुओं (क्रियाओं) का मापदंड है। मनुष्य के जीवन में शारीरिक बल की तुलना में आध्यात्मिक बल अधिक महव रखता है और इसी में आनन्द है। वेदों और उपनिषदों का आध्यात्मिक सदुपदेश है कि हमें ईमानदार, आशावादी, सच्चा, सशक्त और ऊंचे जीवन-मूल्यों को मानने वाला होना चाहिए। मनुष्य के व्यक्ितत्व के तीन तत्व हैं- आत्मा, मन और शरीर। जब हम तीनों तत्वों को स्वस्थ रखते हैं तो हम आनन्दित और प्रसन्न रहते हैं। मन और शरीर की तुलना में आत्मा का स्थान ऊंचा है। प्लूटा का भी यह विश्वास था कि सदाचार से जीवन उत्तम बनता है और उससे सामाजिक जीवन आनन्दित होता है। जिन भी मानव मूल्यों का हम पालन करते हैं उससे ही हमारी सोच व हमारी बु िको मार्गदर्शन मिलता है। मान लीजिए हमें यह निर्णय करना हो कि अव्यभिचार (संयम) और व्यभिचार (पर स्त्री या पर पुरुष गमन) में क्या ठीक है? अगर हम सचमुच सशक्त जीवन मूल्यों का पालन करने वाले हैं तो हमारी आत्मा की आवाज बता देगी कि संयम अव्यभिचार प्रशंसनीय और उत्तम है और व्यभिचार घिनौना कर्म है। हममें बहुत से लोग उन्हीं जीवन-मूल्यों का पालन करते हैं जो हमें हमारे पूर्वजों आदि से मिलते हैं या फिर हम अपने जीवन मूल्य स्वयं विकसित करते हैं। जहां तक संभव होता है हम अपने मूल्यों का पालन करते हैं। लकिन कई बार दूसरों को खुश करन के लिए या अपने सम्बन्धियों की कमियों को छुपान के लिए अपने मूल्यों को बदल देते हैं। कभी-कभी हम किसी से अनुग्रह या सहायता लेन के लिए अपने मूल्यों की बलि चढ़ा देते हैं। किसी भी जीवन या मानव मूल्य का। मूल्य तब ही मूल्य है, जब हम वास्तव में उसे मूल्यवान मानेंगे। यदि हम आचारवान नहीं, तब चाहे कितने ही विचारवान् हों, मूल्यहीन हैं। किसी भी व्यक्ित, समाज या सरकार का यथार्थ मूल्य उसकी मूल्य पति ही है।

Similar questions