उड़ चल, हारिल लिए हाथ में, यही अकेला ओछा तिनका । उषा जाग उठी प्राची में कैसी बाट, भरोसा किन का! शक्ति रहे तेरे हाथों में
छूट न जाय यह चाह सृजन की, शक्ति रहे तेरे हाथों में
रुक न जाय यह गति जीवन की! ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर बढ़ता चीरता चल दिङ् मंडल, अनथक पंखों की चोटों से
नभ में एक मचा दे हलचल! प्र० (i) यहाँ 'हारिल' किसका प्रतीक है?
(क) हरियाली का (ख) सुंदर पक्षी का (ग) जीवन में आगे बढ़ते व्यक्ति का
(घ) जीवन में दुखी एक व्यक्ति का
(ii) उषा किस दिशा में जाग उठी है?
(क) पूरब
(ग) उत्तर
(ख) पश्चिम
(घ) दक्षिण
(iii) हारिल के मन में कौन-सी चाहत छिपी हुई
(क) उड़ान भरने की
(ख) विध्वंस की
(ग) मुक्ति पाने की (iv) हारिल के पंखों को कैसा बताया गया है?
(घ) नव-निर्माण की
(ख) कभी न थकने
(घ) विशाल
(क) सुंदर
(ग) चोटिल
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प्र (1) सुन्दर पक्षी का
प्र (3) उड़ान भरने की
प्र (4) कभी न थकने वाले
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