Hindi, asked by vicky69007, 2 months ago

उड़ने से पहले हवाई जहाज को कैसे तैयार किया जाता है​

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Answered by Braɪnlyємρєяσя
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Answer:

भारतीय विद्वान थे। माना जाता है कि १८९५ में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था। के निर्माता होना माना जाता है। वे मुम्बई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्रकला के अध्येता थे।

शिवकर बापूजी तलपदे Shivkar Talpade.jpg शिवकर बापूजी तलपदे जन्म 1864 मुम्बई मृत्यु 1916 राष्ट्रीयता भारतीय शिक्षा सर जे जे कला विद्यालय, मुम्बई शिवकर ने ई. 1922 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और वेदमन्त्रों के आधार पर आधुनिक काल में पहला वैदिक मॉडल निर्माण किया जिसे बिमान बता कर उड़ा दिया गया। [4] इसका परीक्षण सन् 1922ई. में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर किया गया था । [5] परन्तु उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार विमान उड़ाने के पहला प्रयास सन् १९१५ से सन् 1934 ई। के मध्य में हुआ था। [6] शिवकर ने ई. १९१६ में पं. सुब्रह्मण्ययम शास्त्री से महर्षि भरद्वाज की यन्त्रसर्वस्व - वैमानिक प्रकरण ग्रन्थ का अध्ययन कर ‘मरुत्सखा’ विमान का निर्माण आरंभ किया। किन्तु लम्बी समय से चल रही अस्वस्थता के कारण दि. १७ सितम्बर १९१७ को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया।

Answered by HorridAshu
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उड़ने से पहले हवाई जहाज को कैसे तैयार किया जाता है?

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भारतीय विद्वान थे। माना जाता है कि १८९५ में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था। के निर्माता होना माना जाता है। वे मुम्बई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्रकला के अध्येता थे।

शिवकर बापूजी तलपदे Shivkar Talpade.jpg शिवकर बापूजी तलपदे जन्म 1864 मुम्बई मृत्यु 1916 राष्ट्रीयता भारतीय शिक्षा सर जे जे कला विद्यालय, मुम्बई शिवकर ने ई. 1922 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और वेदमन्त्रों के आधार पर आधुनिक काल में पहला वैदिक मॉडल निर्माण किया जिसे बिमान बता कर उड़ा दिया गया। [4] इसका परीक्षण सन् 1922ई. में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर किया गया था । [5] परन्तु उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार विमान उड़ाने के पहला प्रयास सन् १९१५ से सन् 1934 ई। के मध्य में हुआ था। [6] शिवकर ने ई. १९१६ में पं. सुब्रह्मण्ययम शास्त्री से महर्षि भरद्वाज की यन्त्रसर्वस्व - वैमानिक प्रकरण ग्रन्थ का अध्ययन कर ‘मरुत्सखा’ विमान का निर्माण आरंभ किया। किन्तु लम्बी समय से चल रही अस्वस्थता के कारण दि. १७ सितम्बर १९१७ को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया।

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