उड़ते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा । बरसाती आँखों के बादल बनते जहाँ भरे करुण-जल
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“अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुंँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”
भारत में सूर्योदय का दृश्य बड़ा ही रमणीय है। प्रातः काल सूर्य जब आकाश में उदित होता है तो चारों और अरुणिम अर्थात लालिमा युक्त प्रकाश फैल जाता है।
यहांँ सूर्य प्रतीक है- ज्ञान का क्योंकि भारत भूमि पर ही सर्वप्रथम ज्ञान, योग, सभ्यता, अध्यात्म, दर्शन का जन्म हुआ जिससे संपूर्ण विश्व आलोकित हुआ है। साथ ही यहाँ इस ओर भी संकेत किया गया है कि इतना समृद्ध शाली देश होने के बावजूद भी भारतीयों के मन में दया, प्रेम, करुणा के भाव विद्यमान हैं अर्थात भारतवासियों के मन में जो बंधुत्व और प्रेम, अपनत्व का भाव है वही उनकी संस्कृति को मधुमय बनाता है अर्थात् उनकी प्रेम युक्त बंधुत्व की भावना ही सबके जीवन में मिठास घोलती है। इसलिए यहाँ भारत को “मधुमय देश” कहकर संबोधित किया गया है।
अपने इन्हीं गुणों के कारण यहाँ पर आने वाला अनजान व्यक्ति विशेष भी अपने आप को कभी पराया महसूस नहीं करता। भारत की शरणागत-वत्सलता की ओर संकेत करते हुए प्रसाद जी ने कहा है कि भारत अनंत काल से बाहर से आए हुए लोगों का आश्रय स्थल रहा है। अनेकानेक विदेशियों, शरणार्थियों ने भारत में आकर शरण ग्रहण की है और भारत ने उन्हें हृदय से अपनाया है। या यूँ कहें कि भारतवासियों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने अनजान विदेशियों को भी अपना बंधु समझ कर उन्हें गले से लगाया जिन्हें सबने ठुकरा दिया, उसे हमने गले से लगाया है। भारतवासी अत्यंत संवेदनशील, भावुक प्रवृत्ति के हैं वे दूसरों के दुखों को देखकर करुणा से द्रवित हो जाते हैं और उन्हें अपना लेते हैं, आश्रय देतें हैं इसलिए यहाँ आकर अनजान लोगों को भी सहारा मिल जाता है।