ऊपर उठने की प्रेरणा दे रहा है। काय चाहता है कि पुरानी जीर्ण
परपराओं का त्याग और नवीनता का संचार हो । सांसारिक दलदल
के वैमनस्य से ऊपर उठकर नई सृष्टि की रचना नई पीढ़ी के हाथों
में हो।
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है।।
नए हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नई तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नए राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नई मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है।।
लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है*
तोड़ो बंधन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरंतन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है
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l. will give this answer very soon OK bye bye bye
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