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ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें जीवाश्म ईंधन कोयला पेट्रोलियम तापीय विद्युत संयंत्र जलवा जलविद्युत संयंत्र जैव मात्रा बायोमास पवन ऊर्जा​


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Answered by shivanibhat0508
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ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें जीवाश्म ईंधन कोयला पेट्रोलियम तापीय विद्युत संयंत्र जलवा जलविद्युत संयंत्र जैव मात्रा बायोमास पवन ऊर्जा​

Explanation:

भारत  की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। यदि हमें  वर्तमान विकास की गति को बरकरार रखना है तो ग्रामीण ऊर्जा की उपलब्धता को सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है। अब तक हमारे देश के 21 प्रतिशत गाँवों तथा 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों तक बिजली नहीं पहुँच पाई है।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में काफी अंतर है। उदाहरण के लिए 75 प्रतिशत ग्रामीण परिवार रसोई के ईंधन के लिए लकड़ी पर, 10 प्रतिशत गोबर की उपालियों पर और लगभग 5 प्रतिशत रसोई गैस पर निर्भर हैं। जबकि इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए 22 प्रतिशत परिवार लकड़ी पर, अन्य 22 प्रतिशत केरोसिन पर तथा लगभग 44 प्रतिशत परिवार रसोई गैस पर निर्भर हैं। घर में प्रकाश के लिए 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवार केरोसिन पर तथा अन्य 48 प्रतिशत बिजली पर निर्भर हैं।

जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी कार्य के लिए 89 प्रतिशत परिवार बिजली पर तथा अन्य 10 प्रतिशत परिवार केरोसिन पर निर्भर हैं। ग्रामीण महिलाएँ अपने उत्पादक समय में से लगभग चार घंटे का समय रसोई के लिए लकड़ी चुनने और खाना बनाने में व्यतीत करती हैं लेकिन उनके इस श्रम के आर्थिक मूल्य को मान्यता नहीं दी जाती।

देश के विकास के लिए ऊर्जा की उपलब्धता एक आवश्यक पूर्व शर्त्त है।  खाना पकाने, पानी की सफाई, कृषि, शिक्षा, परिवहन, रोज़गार सृजन एवं पर्यावरण को बचाये रखने जैसे दैनिक गतिविधियों में ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग होने वाले लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा बायोमास से उत्पन्न होता है। इससे गाँव में पहले से बिगड़ रही वनस्पति की स्थिति पर और दबाव बढ़ता जा रहा है। गैर उन्नत चूल्हा, लकड़ी इकट्ठा करने वाली महिलाएँ एवं बच्चों की कठिनाई को और अधिक बढ़ा देती है। सबसे अधिक, खाना पकाते समय इन घरेलू चूल्हों से निकलने वाला धुंआँ महिलाओं और बच्चों के श्वसन तंत्र को काफी हद तक प्रभावित करता है।

नवीनीकृत ऊर्जा

अक्षय ऊर्जा प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत सौर, पवन, सागर, पनबिजली, बायोमास, भूतापीय संसाधनों और जैव ईंधन और हाइड्रोजन से लगातार अंतरनिहित प्राप्त होती रहती है।

सौर ऊर्जा

सूर्य ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है। यह दिन में हमारे घरों में रोशनी प्रदान करता है कपड़े और कृषि उत्पादों को सुखाता है हमें गर्म रखता है इसकी क्षमता इसके आकार से बहुत अधिक है।

लाभ

यह एक बारहमासी, प्राकृतिक स्रोत और मुफ्त है।

यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

यह प्रदूषण रहित है।

हानियां

मौसम में परिवर्तन आश्रित - इसलिए इनका हमेशा प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

उत्पादक को बहुत अधिक प्रारंभिक निवेश करने की आवश्यकता होती है।

सौर ऊर्जा के उत्पादक उपयोग हेतु प्रौद्योगिकी

सौर्य ऊर्जा का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जा सकता है। सोलर फोटोवोल्टेइक सेल के माध्यम से सौर विकिरण सीधे डीसी करेन्ट में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार, उत्पादित बिजली का उसी रूप में इस्तेमाल किया जा सकता या उसे बैटरी में स्टोर/जमा कर रखा जा सकता है। संग्रह किये गये सौर ऊर्जा का उपयोग रात में या वैसे समय किया जा सकता जब सौर्य ऊर्जा उपलब्ध नहीं हो। आजकल सोलर फोटोवोल्टेइक सेल का, गाँवों में घरों में प्रकाश कार्य, सड़कों पर रोशनी एवं पानी निकालने के कार्य में सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का उपयोग पानी गर्म करने में भी किया जा रहा है।

पवन ऊर्जा

पवन स्थल या समुद्र में बहने वाली हवा की एक गति है। पवन चक्की के ब्लेड जिससे जुड़े होते है उनके घुमाने से पवन चक्की घुमने लगती है जिससे पवन ऊर्जा उत्पन्न होती है । शाफ्ट का यह घुमाव पंप या जनरेटर के माध्यम से होता है तो बिजली उत्पन्न होती है। यह अनुमान है कि भारत में 49,132 मेगावॉट पवन ऊर्जा का उत्पादन करने की क्षमता है।

लाभ

यह पर्यावरण के अनुकूल है ।

इसकी स्वतंत्र रूप और बहुतायत से उपलब्ध।

नुकसान

उच्च निवेश की आवश्यकता।

हवा की गति जो हर समय एक समान नहीं होने से बिजली उत्पादन की क्षमता प्रभावित होती है।

जैव भार और जैव ईंधन

जैव भार क्या है?

पौधों प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम सौर ऊर्जा का उपयोग बायोमास उत्पादन के लिए करते हैं। इस बायोमास का उत्पादन ऊर्जा स्रोतों के विभिन्न रूपों के चक्रों से होकर गुजरता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में बायोमास की वर्तमान उपलब्धता 150 मिलियन मीट्रिक टन है। अधिशेष बायोमास की उपलब्धता के साथ, यह उपलब्धता प्रति वर्ष लगभग 500 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है।

बायोमास के उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकी

बायोमास सक्षम प्रौद्योगिकियों के कुशल उपयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हो रहा है। इससे ईंधन के उपयोग की दक्षता में वृद्धि हुई है। जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई का योगदान है और ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जैव ईंधन का व्यापक उपयोग खाना बनाने और उष्णता प्राप्त करने में किया जाता है। उपयोग किये जाने वाले जैव ईंधन में शामिल है- कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर।

स्टोव की बेहतर डिजाइन के उपयोग से कुशल चूल्हे की दक्षता दोगुना हो जाती है।

लाभ

स्थानीय रूप से उपलब्ध और कुछ हद तक बहुत ज़्यादा।

जीवाश्म ईंधन की तुलना में यह एक स्वच्छ ईंधन है। एक प्रकार से जैव ईंधन, कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण कर हमारे परिवेश को भी स्वच्छ रखता है।

हानि

ईंधन को एकत्रित करने में कड़ी मेहनत।

खाना बनाते समय और घर में रोशनदानी (वेंटीलेशन) नहीं होने के कारण गोबर से बनी ईंधन वातावरण को प्रदूषित करती है जिससे स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता।

 है।


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