ऊषा प्रियंवदा का जीवन परिचय निम्न बिंदुओं के आधार पर दीजिए-
(अ) दो रचनाएं
(आ) भाषा शैली
(इ)साहित्य में स्थान।
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मुख्य कृतियाँ
उपन्यास : पचपन खम्भे लाल दीवारें, रुकोगी नहीं राधिका, शेष यात्रा, अंतर-वंशी, भया कबीर उदास
कहानी संग्रह : कितना बड़ा झूठ, एक कोई दूसरा, सम्पूर्ण कहानियां
भाषा
उषा प्रियंवदा ने सरल, सुस्थिर, संयत एवं बोधगम्य खड़ी बोली का प्रयोग किया है। संस्कृत की ज्ञाता लेखिका आकांक्षी,कुण्ठित,अस्थायित्व जैसे शब्दों का प्रयोग कर भाषा को और अधिक सुन्दर बनाती हैं। मर्तबान,कनस्तर,खटिया जैसे प्रचलित शब्द भाषा को सहज बनाते हैं। रिटायर, क्वार्टर, पैसेन्जर जैसे शब्दों के प्रयोग से लेखिका का प्रवास झलकता है। वाजिब, जिम्मेदार, सिर्फ जैसे उर्दू के शब्द भाषा को बोधगम्य बनाने में पूर्णतः सक्षम हैं। लघु वाक्य-विन्यास,कहावतों तथा मुहावरों का प्रयोग भाषा का सरल रूप है। शब्दों के सामासिक प्रयोग से उषा प्रियंवदा के साहित्य की भाषा में कसावट विद्यमान रहती है।
शैली
उषा प्रियंवदाजी की शैली भावात्मक विवरणात्मक तथा व्यंग्यात्मक है। उनके उपन्यासों में विवरण शैली के दर्शन होते हैं,तो कहानियों में भावात्मकता तथा व्यंग्य परिलक्षित हैं। उनकी सहज कथन शैली तथा यथार्थ का चित्रण बेजोड़ है। भावुकता,माधुर्य और प्रवाह उनकी शैली की विशेषता है। उनके व्यंग्य चुटीले व सार्थक हैं, जिनमें विदेशी शब्दों की सहायता से पीड़ा व कराहट का अनुभव होता है। इस प्रकार उनकी शैली वर्ण्य-विषय के सर्वथा अनुकूल है।
साहित्य में स्थान
हिन्दी कथा साहित्य में लेखिका का विशिष्ट स्थान होने का प्रमुख कारण है-वर्तमान में नष्ट होते हुए भारतीय मूल्यों का सटीक चित्रण।
वर्तमान जीवन की विसंगतियों और उनकी विशृंखलताओं का सामाजिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर यथार्थ व सजीव चित्रण करके लेखिका हिन्दी कथा साहित्य में अपना उच्च स्थान स्वयं निर्धारित करती हैं। उनकी कथाएँ पारिवारिक विघटन को रोकने का संदेश देती हैं। सच्चे अर्थों में उषा प्रियंवदा आधुनिक समाज की एक आदर्श कथाकार हैं।
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