ऊधौ मन माने की बात।
दाख छुहारा छांडि अमृत फल, बिषकीरा
अमृत फल, बिषकीरा बिष खात।।
ज्यों चकोर कों देई कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।
मधुप करत घर फोरि काठ मैं, बंधत कमल के
ज्यौं पतंग हित जानि आपनो,
आपनो, दीपक सौं
सूरदास जाकौ मन च सोई
।।
पात।।
लपटाता
ताहि सुहात
जासौ
Answers
ऊधौ मन माने की बात।
दाख छुहारा छांडि अमृत फल विषकीरा विष खात॥
ज्यौं चकोर को देइ कपूर कोउ तजि अंगार अघात।
मधुप करत घर कोरि काठ मैं बंधत कमल के पात॥
ज्यौं पतंग हित जानि आपनौ दीपक सौं लपटात।
... सूरदास जाकौ मन जासौं सोई ताहि सुहात॥
यह पद सूरदास जी द्वारा लिखा गया है | पद में मन पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल है , इसके बारे में समझाया गया है | जो एक बार मन को अच्छा लग जाए , वही सबसे अच्छा लगने लगता है |
गोपियां , उद्धव से कहती है , तो मन के मानने की बात है , किसी को कुछ अच्छा लगता है तो किसी को कुछ और | अब सर्प को देख लो , उसे उसे दाख-छुआरा व अमृत (रस से परिपूर्ण) फल अच्छे नहीं लगते। इसीलिए वह विष का सेवन करता है।
उसी प्रकार चकोर को कपूर दिया जाए तो वह उसका परित्याग कर अंगार को ही ग्रहण करता है।
भ्रमर काठ को विदीर्ण कर उसमें अपना घर बना लेता है लेकिन स्वयं कमल दल में बंद हो जाता है। पतंगा दीपक को प्राणपण से चाहने के कारण ही उस पर अपने प्राणों को न्योछावर कर देता है।
सूरदास जी कहते हैं कि जिसको जो अच्छा लगता है , वह उसे ही पाता है |