Hindi, asked by tanish1569, 6 months ago


ऊधो मन नाहीं दस बीस।
एक हतौ सो गयो स्याम संग, को आराधै ईस ?
भई अति सिथिल सबै माधव बिनु, यथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकि रहे आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस।
तुम तो सखा स्याम सुंदर के, सकल जोग के ईस।
'सूरदास' रसिक की बतियाँ, पुरवौ मन जगदीस।।
Pls explain this to me....​

Answers

Answered by arushi667799
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Answer:

गोपियां कहती है, `मन तो हमारा एक ही है, दस-बीस मन तो हैं नहीं कि एक को किसी के लगा दें और दूसरे को किसी और में। अब वह भी नहीं है, कृष्ण के साथ अब वह भी चला गया। तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की उपासना अब किस मन से करें ?" `स्वासा....बरीस,' गोपियां कहती हैं,"यों तो हम बिना सिर की-सी हो गई हैं, हम कृष्ण वियोगिनी हैं, तो भी श्याम-मिलन की आशा में इस सिर-विहीन शरीर में हम अपने प्राणों को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं।" `सकल जोग के ईस' क्या कहना, तुम तो योगियों में भी शिरोमणि हो।

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