ऊधौ तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तें, नाहिन मन अनुरागी ।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति- नदी मैं पाऊँ न बोरयों, दृष्टि न रूप परागी ।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चांटी ज्यौं पागी ।
गोपियां उद्भव को बड़भागी क्यों कहती हैं? (3)
गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है तथा क्यों ? (3
)
कलम के पत्ते की कौन सी विशेषता पद में बताई गई
है?(3)
गोपियाँ उद्धव को क्या समझाना चाहती है ? (3)
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