Hindi, asked by dealer007, 5 months ago

ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी ।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोस्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।
रस बताइए​

Answers

Answered by kukusaini74510
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Answer:

गोपियाँ ऊधव से व्यंग्य करते हुए कहती है की हे ऊधव तुम तो बहुत भाग्यशाली हो जो तुम श्रीकृष्ण के इतनी पास होकर भी उनके प्रेम के बंधन मे नही बँधे हो तुम्हारे मन मे किसी के लिए भी प्रेम जागृत नही हुआ है तुम कमल के पत्ते जल के पास होकर भी जल के ऊपर रहते है और उन पर जल की एक भी बूंद नही ठहरती। जिस प्रकार तेल की मटकी को जल मे भिगोने से उसके ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ता उसी तरह तुम्हारे ऊपर भी श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का कोई प्रभाव नही पड़ता । वास्तविकता यह है कि अभी तक तुम प्रेम रूपी नदी मे नही उतरे हो इसलिए तुम न तो तुम रूप पारखी हो और न ही प्रेम के भाव को जानते हो ।

सूरदास जी बताते है कि गोपियाँ ऊधव को कहती है कि हम भोली भली ग्रामीण अबलाएँ श्री कृष्ण के प्रेम मे इस प्रकार खो गए है कि अब हम श्री कृष्ण से विमुख नही हो सकते । हमारी स्तिथि गुड मे लगी उन चींटियों के समान हो गयी है जो गुड के प्रति आकर्षित होकर उसमें चिपक तो जाती ह पर खुद को छुड़ा नही पाती ।

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