ऊधौ , तुम हो अति बड़भागी । अपरस रहत सनेह तगा तैं , नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर , ता रस देह न दागी। ज्यों जल मांह तेल की गागरि , बूँद न ताकौं लागी ।
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ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी। अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी। ... जैसे तेल से चुपड़े हुए गागर पर पानी की एक भी बूँद नहीं ठहरती है, ऊधव पर कृष्ण के प्रेम का कोई असर नहीं हुआ है।09-sɛք-2017
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