v. 'अहम् अस्मि तपोदत्तः' इत्यत्र किं कर्तृपदम् प्रयुक्तम् -
(क) अपि (ख) अहम् (ग) ysysyhxतपोjsjsjjsदत्तः
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जीवन को विचार की गहनता से नहीं जाना जा सकता क्योंकि विचार की एक सीमा है और जीवन असीम है। आप कितना भी विचार करें वहां तक नहीं पहुंच सकते जो सत्य है,अहं ब्रह्मास्मि विचार का प्रतिपादन नहीं है। यह तो जीवन के अनन्त स्त्रोत को जानने के बाद का किया गया उद्घोष है। जीवन द्वैत से अद्वैत की यात्रा काम नाम है जीवन को आप एक आयाम में नहीं देख सकते जब जीवन को आप विचार से देखते हैं तो द्वैत है। आप हर चीज को बांट के देखते हैं जैसे दिन और रात, धूप और छांव, एक आदमी दूसरे को अपने से अलग समझता है, मनुष्य पशु से अपने को अलग समझता है।ये व्यवहार के लिए ठीक है मगर जीवन व्यवस्था कोई किसी से अलग नहीं है, आप अपने मन से जीते हैं इस लिए आप को पता नहीं चलता कि जीवन क्या है सत्य क्या ब्रह्म क्या है। जीवन को बांट नहीं जा सकता है, जो बट जाए ओ जीवन नहीं ओ आप का अहंकार है,जिसे आप जानते हैं। आप उपनिषद् की बात नहीं समझ सकते क्योंकि उपनिषद् को समझने के लिए उपनिषद् होना पड़ेगा विचार से उसे नहीं जाना जा सकता। अगर आप विचार से उसे जानने का प्रयास करेंगे तो कुछ भी नहीं जानते सकते सिवाय शब्दों के ज्ञान ही होंगे और कुछ भी नहीं और शब्द से सत्य का कुछ लेना देना नहीं है।