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आज कहाँ से फिर आ पहुँचा
फागुन' में सावन!
सुबह उड़ी थी धूल
शाम को घिर आए बादल
बासंती रातों में बरसा
किन आँखों का जल
पतझर' की नंगी डालों में पुलक उठा यौवन।
आज कहाँ से फिर आ पहुँचा फागुन में सावन !
सौंधी-सौंधी मिट्टी महकी
गमक उठा उपवन
बिजली कौंधी आसमान में
धरती में सिहरन
होली में कजली' गाने को फिर ललचाया मन।
आज कहाँ से फिर आ पहुँचा फागुन में सावन !
हरियाली का स्वप्न
लगा पुतलियों में
अलियों11 का उन्माद12
कि शोखी13 आई कलियों में
तपन4 बिना क्या मूल्य तुम्हारा, जीवन-धन रस-घन।
आज कहाँ से फिर आ पहुँचा फागुन में सावन !
8
थिरकने लगा
-शिवमंगल सिंह 'सुमन'
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