(v) सर्वधर्म समन्वय ने भारतीय समाज को किस prakar prabhavit kiya
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श्री रामकृष्ण वचनामृत से उद्धित कुछ अमृत कि बूंदें
रामकृष्ण …………………
जिस मनुष्य में कोई एक बड़ा गुण है जैसे संगीत, विद्या उसमें ईश्वर कि शक्ति विशेष रूप से विद्यमान हैं। भक्ति ही सार है। ईश्वर तो सर्वभूतों में विराजमान है फिर भक्त किसे कहूं …… जिसका मन सदा ईश्वर में है। अहंकार, अभिमान रहने पर कुछ नही होता -------मैं रूपी टीले पर ईश्वर कृपा रूपी जल नहीं ठहरता , लुढक जाता है। मैं यंत्र हूँ।
सब मार्गों से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है। सभी धर्म सत्य हैं।छत पर चढ़ने से मतलब है , कि तुम पक्की सीढ़ी से भी चढ़ सकते हो और लकड़ी कि सीढ़ी से भी चढ़ सकते हो और फिर गांठदार बांस के जरिये भी चढ़ सकते हैं।
सभी समझते हैं कि मेरी घडी ठीक चल रही है सभी धर्म एक ईश्वर कि और ले जाते हैं , उनसे प्रेम आकर्षण रहना चाहिए। वे अन्तर्यामी जो हैं। वे अंतर की व्याकुलता आकर्षण को देख सकते हैं फिर भक्तगण उन्हें ही अनेकों नामों से पुकार रहे हैं। एक ही व्यक्ति को बुला रहे हैं एक तालाब के चार घाट हैं | हिन्दू लोग एक घाट में जल पी रहे हैं और कहते हैं ---पानी। अंग्रेज लोग दूसरे घाट में पी रहे हैं और कह रहे हैं ----वाटर , मुसलमान तीसरे घाट पर जल पी रहे हैं और कहते हैं … पानी , कुछ लोग चौथे घाट में पी रहे हैं और कहते हैं एक्वा [aqua ]
एक ईश्वर है अनेक अनेक नाम हैं।
Khushi... ☺☺