Chemistry, asked by lavkeshsingh47, 8 months ago

विभिन्न प्रकार के कार्बनिक यौगिकों की त्रिविम रसायन को समझाइए उनके कि रेल का और प्रतिदिन में गुण धर्मों को समझाइए​

Answers

Answered by harpreetgholia01
2

Answer:

sorry I didn't understand your question

Answered by jahanvichauhan321
0

Answer:

विन्यासरसायन, या त्रिविम रसायन (Stereochemisty), रसायन की वह शाखा है जो अणुओं के अन्दर परमाणुओं के सापेक्षिक स्थिति (relative spatial arrangement) एवं उनके प्रभावों का अध्ययन करती है।

अनुक्रम

1 परिचय

2 इतिहास

3 प्रकाशीय समावयवता (Optical Isomerism)

4 प्रतिबिंब रूपों के गुण

5 चतुष्फलकीय कार्बन परमाणु (Tetrahedral Carbon Atom)

6 चतुष्फलकीय कार्बन की पुष्टि

7 एक असममित कार्बन परमाणुवाले यौगिक

8 दो या अधिक असममित कार्बन परमाणुवाले यौगिक

9 रेसिमिक रूपांतरण (Racemic Modification)

10 रेसिमीकरण (Racemisation)

11 रेसिमिक रूपों का विभेदन (Resemic Resolution)

12 नामकरण

13 वाल्डन प्रतिलोमन (Walden Inversion)

14 इन्हें भी देखें

15 बाहरी कड़ियाँ

परिचय

'स्टीरिओ' शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द स्टिरिऑस (sterios) से, जिसका अर्थ 'ठोस' होता है, हुई है और यह रासायनिक यौगिकों के उन गुणों से संबंधित है जो उनके अणु के परमाणुओं की त्रिविम व्यवस्था पर निर्भर हैं। परमाणुओं की त्रिविम व्यवस्था का सबसे प्रमुख फल त्रिविम समावयवता (stereo-isomerism) है। समावयवी वे यौगिक हैं जिनका अणुसूत्र एक समान होता है, पर कुछ भौतिक तथा रासायनिक गुणों में वे भिन्न होते हैं। यह विभिन्नता इनके अणुओं के भीतर परमाणुओं की व्यवस्था की भिन्नता के कारण होती है। एथिल ऐलकोहॉल और डाइमेथिल ईथर दोनों का अणुसूत्र एक ही C2H6O है, पर अणुओं में परमाणुओं का विन्यास भिन्न भिन्न है।

विन्यास समावयवता दो प्रकार की होती है : एक प्रकाशीय समावयवता और दूसरी ज्यामितीय समावयवता। प्रकाशीय समावयवता असममित होने के कारण प्रकाशत: सक्रिय होते हैं तथा बहुत से रासायनिक और भौतिक गुणों में समान होते हैं। इनका सबसे प्रमुख अंतर ध्रुवित प्रकाश के साथ की क्रिया है, क्योंकि इन समावयवियों का घूर्णन बराबर और विपरीत दिशा में हो सकता है। ज्यामितीय समावयवियों के रासायनिक तथा भौतिक गुणों में भिन्नता होती है।

इतिहास

विन्यासरसायन के प्रारंभिक इतिहास का वास्तविक अध्ययन प्रकाश की कुछ घटनाओं की खोज से आरंभ होता है। 1908 ई. में मालुस (Malus) ने घूर्णन द्वारा प्रकाश के ध्रुवण की खोज की और तीन वर्ष बाद आरागो (Arago) ने स्फटिक के प्रकाश-सक्रिय होने का पता लगाया। 1815 ई. में विओ (Biot) ने पता लगाया कि ठोसों के साथ-साथ द्रव और गैसें भी विलयन में प्रकाशसक्रिय होती हैं।

विशिष्ट घूर्णन - किसी प्रकाशत: सक्रिय पदार्थ का विशिष्ट घूर्णन समीकरण के द्वारा दर्शाया जाता है, जिसे विशिष्ट घूर्णन, प्रकाश की तरंग लंबाई l तथा t डिग्री ताप के लिए है और a प्रकाश के घूर्णन का अंश (degree) है, जो 1 सेंटी मीटर लंबी नली से होकर प्रकाश के जाने से प्राप्त हुआ तथा d नली में भरी हुई प्रकाशसक्रिय वस्तु की प्रति घन सेंमी. सांद्रता है। दाहिनी ओर के घूर्णन को धनात्मक (+) तथा बाईं ओर के घूर्णन को ऋणात्मक (-) कहते हैं। विशिष्ट घूर्णन प्रकाश तरंग, लंबाई, ताप, विलायक तथा सांद्रण पर निर्भर है। कभी-कभी इनके परिवर्तन के कारण घूर्णन की दिशा ही विपरीत हो जाती है।

शेले (Scheele) ने 1768 ई. में टार्टरिक अम्ल अंगूरों के टार्टर से प्राप्त किया तथा 1819 ई. में केस्टनर (Kastner) ने उसी संघटन का एक अम्ल उपजात के रूप में पाया और इसका नाम रेसिमिक (Racemic) अम्ल रखा। 1838 ई. में बिओ ने पता लगाया कि टार्टरिक अम्ल प्रकाशत: सक्रिय है और रेसिमिक अम्ल प्रकाशत: निष्क्रिय है। ध्रुवित प्रकाश तथा प्रकाशत: सक्रियता की खोज के उपरांत विन्यासरसायन के सिद्धांतों में उल्लेखनीय प्रगति पैस्टर (Pasteur) के द्वारा हुई। पैस्टर ने पता लगाया कि टार्टरिक और रेसिमिक अम्लों का संघटन तथा उनका संरचनासूत्र HOOC-CHOH-CHOH-COOH एक है, पर उनके भौतिक गुणों में भिन्नता है। रेसिमिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल की अपेक्षा पानी में कम विलेय है तथा टार्टरिक अम्ल और उसके लवण प्रकाशत: सक्रिय हैं, पर रेसिमिक अम्ल और उसके लवण प्रकाशत: निष्क्रिय हैं। पैस्टर की सबसे विख्यात खोज रेसिमिक अम्ल के सोडियम और अमोनियम लवण पर हुई। यह लवण जब जल से 22 डिग्री पर क्रिस्टलीकृत होता है, तो इसके क्रिस्टन दूसरे रेसीमेट से भिन्न होते हैं और इनकी अर्धफलकीय फलिकाएँ (hemihedral facets) होती हैं। दो प्रकार के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं, एक तो दक्षिणवर्त सोडियम अमोनियम टार्टरेट की भाँति सर्वसम और दूसरी तरफ के क्रिस्टल, जिनकी अर्धफलकता (hemihedrism) इनके विपरीत होती है। इस दूसरे प्रकार के क्रिस्टल को दर्पण प्रतिबिंब (मिरर इमेज) की संज्ञा दी गई। इनको जब मिश्रण से पृथक् किया गया तो इसका जलीय विलयन वामावर्त (laevorotatory) था। इससे प्राप्त अम्ल का क्रिस्टल भी टार्टरिक अम्ल के क्रिस्टल के दर्पण प्रतिबिंब के रूप में था और विलयन भी वामावर्त था। इसलिए इस अम्ल को टार्टरिक अम्ल का दूसरा रूप समझा गया। इनके क्रिस्टल असममित होते हैं

Similar questions