"विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद रस निष्पति:" किसका कथन है ? *
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आचार्य विश्वनाथ
आचार्य भरतमुनि
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य मम्मट
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सही विकल्प होगा...
✔ आचार्य भरतमुनि
स्पष्टीकरण ⦂
✎... “विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद रस निष्पत्ति” ये कथन ‘आचार्य भरतमुनि’ का है।
आचार्य भरत मुनि के इस कथन का तात्पर्य है कि विभावस अनुभाव और संचारी भाव इन तीनों भावों के सहयोग से ही रस की निष्पत्ति होती है।
आचार्य भरतमुनि के अनुसार रस नाटक का वह तक होता है जो है, जो हृदय को आस्वाद प्रदान करता है और रस के आस्वाद से ही हृदय हर्षित होता है।
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