वैचारिक निबंध in hindi
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इस बात को वैज्ञानिक भी मानता है कि किसी प्रश्न का उत्तर देने के उपक्रम से पहले प्रश्न को भी ठीक-ठीक समझने के लिए उसका इतिहास जानना उपयोगी होता है। वैज्ञानिक के ऐतिहासिकतावाद के साथ तो इस दृष्टि को जोड़ा ही जा सकता है। लेकिन बात केवल प्रश्न को ऐतिहासिक सन्दर्भ में रख देने की नहीं है। जो सवाल हम पूछ रहे हैं उस तक हम पहुँचे कैसे, इसके ऐतिहासिक परिदृश्य के सहारे ही हम ठीक-ठीक समझ सकते हैं कि हम वास्तव में पूछ क्या रहे हैं। मानव जिज्ञासा-मात्र में क्या-क्या उत्तर पहले प्रस्तावित किए जा चुके हैं और परीक्षण, प्रयोग तथा व्यवहार के बाद अधूरे या भ्रान्त पाये जा चुके हैं-अतीत में संचित अनुभवों से मिले हुए संस्कार के चौखटे में ही हमारा प्रश्न रूप लेता है। जिन भी शब्दों में वह प्रश्न प्रस्तुत किया जाता है, सभी के साथ नए अपरीक्षित अनुमान और तिरस्कृत पुरानी अवधारणाएँ जुड़ी रहती हैं। प्रश्न के तीखे आलोकित रूप के आसपास झुटपुटे का भी एक बहुत बड़ा वृत्त रहता है जिसकी उपेक्षा से हमारी जिज्ञासा के पूरे आयाम स्वयं हमारे वश में नहीं आते।