वैचारिक प्रदूषण बीमारियों का मूल कारण
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जल ,वायु,ध्वनि,मृदा एवं रेडियोधर्मी प्रदूषण एवं न जाने कितने तरह के प्रदूषण के प्रकार होते है,लेकिन इस समय हमारे देश मे एक अलग प्रकार का प्रदूषण शुरू हो गया है जिसको हम वैचारिक प्रदूषण कहेगें । ये प्रदूषण ज्यादातर उस जगह पर फैलता है जहां पर विशेषरूप से हमारे माननीय लोग हमारे देश का भविष्य तय करते है। इन राजनेताओं के बीच ये प्रदूषण इतना तेज फैलता है कि ये भी भूल जाते है कि संसद भवन मे बैठे है और हमको जनता लाइव देख रही है ।अपने - अपने विचारो की भिन्नता के कारण ये राजनेता संसद के पूरे कार्यकाल को हवा मे ही खत्म कर देते है उसको धरातल पर नही आने देते। जनता का कितना पैसा इनके वैचारिक प्रदूषण के कारण खत्म हो जाता है लेकिन इन लोगो को ये समझ मे नही आता कि करोड़ो रुपये रोज खर्च करने के बाद हम संसद नही चलने देते। इसमे भी खासकर बिपक्ष के लोग । विपक्ष का मतलब ये नही होता है कि हर मामले मे टांग फंसायी जाय। अगर बिरोध का मामला हो तब विरोध करना चाहिये। लेकिन यहाँ विपक्ष का मतलब लोग यही समझते है कि हर मामले का विरोध करना। जैसे पाकिस्तान मे कोई भी शासक हो उसका पहला काम है भारत के खिलाफ बोलना ।अगर वो भारत के खिलाफ नही बोलता तो उसकी कुर्सी जाना तय है।इसलिये अगर भारत कोई काम अच्छा भी करे तो पाक गलत ही बताएगा। इसी प्रकार हमारे सत्ता पक्ष और विपक्ष मे जो विचारो मे भिन्नता आती है उसका खामियाजा संसद भवन को उठाना पड़ता है। संसदभवन को जिस उद्देश्य से बनाया से बनाया गया उस पर खड़ा उतरने नही देते हमारे राजनेता ।ऐसा वे क्यो करते है ये समझ से परे है।संसद भवन को बनाया गया कि सभी दल इकठ्ठा होकर देश के विकास के बारे मे सोचे,जो जरूरी हो उस नियम कानून को बनाये और उसको लागू करवाये, लेकिन यहाँ पर अब लोग केवल हो-हल्ला करके अपने घर चले जाते है,फिर दूसरे दिन आकर फिर वही शोर-शराबा शुरू। इन देश के कर्णधारो का विचार क्यो मेल नही खाता । केवल एक मामला पूरे देश मे ऐसा है जिस पर पूरे दल एक दिखते है।उस समय गजब की एकता होती है सांसदों और विधायको में ।न तो कोई भाजपा,न तो कोई कांग्रेस,न तो कोई सपा, और न बसपा और न जाने कितने दल एक हो जाते है। इनके अन्दर न तो कोई वैचारिक प्रदूषण ही जगह बना पाता है। इस मुद्दे पर "सबका साथ,सबका विकास दिखता है।और वो मामला है सेलरी बढ़वाने का । यही एक मामला है जिस पर सभी लोग साथ दिखते है।इस मामले मे दूर-दूर तक कोई वैचारिक प्रदूषण दिखाई नही पड़ता।
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