Hindi, asked by krishna4276, 9 months ago

वैचारिक प्रदूषण पर 500 शब्दों का निबंध



guys sab jaldi se bta do yarr​

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Answered by barkharautela36
19

Answer:मनुष्य ने न केवल जल को प्रदूषित किया है, बल्कि अपने विभिन्न क्रियाकलापों एवं तकनीकी वस्तुओं के प्रयोग द्वारा वायु को भी प्रदूषित किया है। वायुमंडल में सभी प्रकार की गैसों की मात्रा निश्चित है। प्रकृति में संतुलन रहने पर इन गैसों की मात्रा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता, परंतु किसी कारणवश यदि गैसों की मात्रा में परिवर्तन हो जाता है तो वायु प्रदूषण होता है।

अन्य प्रदूषणों की तुलना में वायु प्रदूषण का प्रभाव तत्काल दिखाई पड़ता है। वायु में यदि जहरीली गैस घुली हो तो वह तुरंत ही अपना प्रभाव दिखाती है और आस-पास के जीव-जंतुओं एवं मनुष्यों की जान ले लेती है। भोपाल गैस कांड इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। विभिन्न तकनीकों के विकास से यातायात के विभिन्न साधनों का भी विकास हुआ है।

एक ओर जहां यातायात के नवीन साधन आवागमन को सरल एवं सुगम बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर ये पर्यावरण को प्रदूषित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं। नगरों में प्रयोग किए जाने वाले यातायात के साधनों में पेट्रोल और डीजल ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। पेट्रोल और डीजल के जलने से उत्पन्न धुआं वातावरण को प्रदूषित करता है।

औद्योगिकरण के युग में उद्योगों की भरमार है। विभिन्न छोटे-बड़े उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं के कारण वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैस मिल जाते हैं। ये गैस वर्षा के जल के साथ पृथ्वी पर पहुंचते हैं और गंधक का अम्ल बनाते हैं, जो पर्यावरण व उसके जीवधारियों के लिए हानिकारक होता है।

Explanation:mark as brillient

Answered by bhatiamona
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वैचारिक प्रदूषण पर 500 शब्दों का निबंध।

आज संसार में तरह-तरह के प्रदूषण है। भौतिक प्रदूषण में वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण,  जल प्रदूषण आदि के नाम सभी जानते हैं, लेकिन ऐसा प्रदूषण भी है जो हमें दिखाई नहीं देता लेकिनये प्रदूषण निरंतरा बढ़ता ही जा रहा है। इस प्रदूषण को वैचारिक प्रदूषण कहते हैं।

वैचारिक प्रदूषण से तात्पर्य है, विचारों का प्रदूषण अर्थात विचारों का दूषित हो जाना। आज मनुष्य का मन पूरी तरह निर्मल नहीं रह गया है। उसके विचार दूषित हो चुके हैं, आज मनुष्य संस्कारी नहीं रह गया है। उसके संस्कार असंस्कारित हो चुके हैं, यही वैचारिक प्रदूषण मानव सभ्यता को पतन की ओर लेता जा रहा है। वैचारिक प्रदूषण से तात्पर्य मन में छल कपट रखना तिरस्कार, अपमान, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार, यह सभी अवगुण वैचारिक प्रदूषण को बढ़ाते हैं।

जो व्यक्तियों से इन दोषों से दूषित है, वह वैचारिक प्रदूषण का शिकार है।

भौतिक प्रदूषण तो  केवल हमारे तन को नुकसान पहुंचाता है, जबकि वैचारिक प्रदूषण हमारे तन एवं मन दोनों को नुकसान पहुंचाता है। प्रश्न यह है कि वैचारिक प्रदूषण से कैसे बचा जाए। इसका उपाय यही है कि विचारों को शुद्ध किया जाए अच्छे संस्कार ग्रहण किया जाए। अच्छे लोगों के संपर्क में रहा जाए। गलत बातों को प्रचार करने से बचा जाए, अच्छी पुस्तकें पढ़ी जाए, अच्छी सत्संग में रहा जाए, जिससे विचारों में उच्चता आए, विचारों का पता नहीं हो, मन में निम्न विचारों का समावेश नहीं हो।

इन सब बातों से वैचारिक प्रदूषण से बचा जा सकता है। जिस समाज में वैचारिक प्रदूषण बढ़ेगा समाज का पतन निश्चित है, इसलिए समाज के उत्थान के लिए आवश्यक है कि विचारों का पतन नहीं हो।

#SPJ3

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