विचार लो कि मरते हो न मृत्यु से डरो कभी मरो, परंतु यू मरो की याद जो करें सभी । हुई न यो सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिए, मरा नहीं वही की जो जिया ना आपके लिए । वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरें, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।। प्रश्न1- प्रस्तुत काव्यांश के कवि हैं
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जो मृत्यु से नहीं डरता वही अमर है
जो अपने लिए नहीं जीता उसे पशु-प्रवृति कहते हैं
आज के लोग मृत्यु से डरते हैं
वह कभी नहीं मरते जो दूसरों के लिए जीते हैं
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मनुष्यता” कविता 'मैथिलीशरण गुप्त' द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्यता से रहने का संदेश दिया है। कविता का प्रतिपाद्य है कि मनुष्य को मनुष्यता को अपनाते हुए जीना चाहिए। मनुष्यता का तात्पर्य है, अपने हित के साथ-साथ दूसरों के हित के बारे में भी सोचना।
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