वाचय के प्रकार बताए व उनके दस उदाहरण दे
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वाच्य के तीन प्रकार हैं-
1. कर्तृवाच्य।
2. कर्मवाच्य।
3. भाववाच्य।
) कर्तृवाच्य - क्रिया के उस रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो।
जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है, मैंने पुस्तक पढ़ी।
(2) कर्मवाच्य - क्रिया के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो।
जैसे- पुस्तक पढ़ी जाती है; आम खाया जाता है।
यहाँ क्रियाएँ कर्ता के अनुसार रूपान्तररित न होकर कर्म के अनुसार परिवर्तित हुई हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अँगरेजी की तरह हिन्दी में कर्ता के रहते हुए कर्मवाच्य का प्रयोग नहीं होता; जैसे- 'मैं दूध पीता हूँ' के स्थान पर 'मुझसे दूध पीया जाता है' लिखना गलत होगा। हाँ, निषेध के अर्थ में यह लिखा जा सकता है- मुझसे पत्र लिखा नहीं जाता; उससे पढ़ा नहीं जाता।
(3) भाववाच्य - क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो । क्रिया के लिंग वचन कर्म के लिंग एवं वचन के अनुसार होते है।
जैसे- मोहन से टहला भी नहीं जाता। मुझसे उठा नहीं जाता। धूप में चला नहीं जाता।