विघा अर्जन ! एक साधना पर निबंध ? Tomorrow is my exam???ASAP
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विघा अर्जन ! एक साधना
भारत में सनातन काल से विघा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल पध्द्ति अपनाई गई थी, जिसमें विघा प्राप्त करने के लिए विघार्थी को गुरु के पास आश्रमों में एक निशचित अवधि तक रहकर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती थी । गुरु के मार्ग दर्शन व प्रवचनों के दवारा प्राप्त ज्ञान को गुरुकुल वासी विघार्थीयों को अपने सामथ्य्र के अनुसार ग्रहण करके वाद-विवाद के द्वारा ही गुरुओं के सम्मुख करना पड़ता था । गुरुकुल में विघाथियों की वेशभूषा व दिनचर्या ही उनकी पहचान थी । एक प्रकार से 14 से 20 वर्षों के पश्चात जब विघार्थी अपने पारिवारिक परिवेश में लौटता था, तो माता-पिता व कुटुम्बी उससे मिलने के लिए लालायित रहते थे। उसका बड़ा सत्कार होता था। परिवार में समारोह का आयोजन होता था। गुरुओं का आशीर्वाद व बदली हुई जीवन-शैली ही उसका प्रामाण पत्र होती थी।
आज का परिवेश भिन्न प्रकार का है। समाज में बदलाव आया है। अतः सामाजिक पध्द्तियाँ भी बदल गई हैं। आधुनिकता की दौड़ में गुरुकुल संस्थाएं भी कहीं खो गई हैं। विघार्थी एक नियमित पध्द्ति के द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के बन्धन में नहीं पड़ना चाहता है। उसमें प्रमाण-पत्रों को प्राप्त करने व उन्हें अधिक से अधिक इकटठा करने की होड़ लगी है, शायद यही कारण है कि शिक्षा का व्यावसनहीनता हो गया है। ज्ञानार्जन की पिपासा मिट चुकी है। प्रमाण पत्र प्राप्त करना एक मात्र ध्येय रह गया है। शिक्षा के उद्देश्य बदल गए है। सामाजिक मूल्यों में लगातार गिरावट आ रही है। विघार्थी में नकल की बढ़ती कुप्रव्रत्ति, अनुशासनहीनता, अनैतिकता, संवेदनशीलता की कमी के लिए शिक्षक वर्ग पर उंगली उठ रही है। गुरु महिमा पर चोट पहुँच रही है। गुरु व गोविन्द की तुलना निर्थरक हो गई है। इस पर गम्भिरता पुर्वक विचार करना अति आवश्यक हो गया है। सामाजिक मूल्यों को पुन: स्थपित करना होगा। इसके लिए शिक्षक वर्ग को ही आत्म निरीक्षण कर पहल करनी होगी। निःस्वार्थ, निष्पक्ष एवं समर्पण की भावना को प्रोत्साहित करके सामाजिक मुल्यों की रक्षा करनी होगी।
विघा एक साधना है, विघार्थी एक साधक है। बिना साधना के विघा प्राप्त करना सम्भव नहीं है। इस साधना में गुरु एक प्रेरणा स्त्रोत है। एकलव्य ने गुरु को एक प्रेरणा स्त्रोत के रुप में अपनाया व अव्दितीय धनुर्विघा प्राप्त की। भगवान राम ने शिव आराधना कर आणविक शस्त्र-विघा की व ब्रह्नास्त्र को प्रयोग करने की विघा प्राप्त करने के लिये देवताओं की गहन साधना से गुजरना पड़ा। आज के वैज्ञानिक युग में जब सभी काम कम्प्यूटर पर होने लगे हैं, तब गुरुजनों को विघार्थी वर्ग में निहित चिन्तनशीलता व गहन अधययन की प्रब्रत्ति को उजागर करने में महत्वपुर्ण सहयोग देने की आवश्यकता है। हमारे शिक्षा-शास्त्रियों ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को तैयार करते हुए विशेष ध्यान दिया है। वर्तमान पाठ्यक्रम को समाज की जरुरतों के अनुरुप बनाने का प्रयास किया है। परन्तु यह एक निरन्तर चलने बाली प्राक्रिया है। इसमें समय-समय पर बदलाव की आवश्यकता पड़ती है।
विघार्थी वर्ग से मेरी अपेक्षा है कि वह अपने निहित गुणों की पहचान करें व शिक्षा साधक बनने का प्रयास करें ताकि उनकी मानसिक शक्ति का समुचित विकास हो सके और गुरु महिमा की ये पंक्तियां हमेशा हमेशा के लिए सार्थक सिद्ध हों।
गुरु गोविन्द दोउ ख़ड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो जो गोविन्द दियो बताय ।।