वाइसोयी राज-समाज बने,गज,बाजि गहने मन संभ्रम छायों |
कैधों परयों कहुँ मारग भूलि ,कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो ||
भौन बिलोकिबे को मन लोचत ,अब सोचत ही सब गाँव मझायो |
पूँछत पाड़े फिरे सब सों पर झोंपरी को कहूँ खोज न पायो |
प्रस्तुत पाठ का नाम
और कवि का नाम
सुदामा का मन बार-बार क्या चाह रहा था ?
यहाँ पाड़े किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
वाइसोयी राज समाज कहाँ बने थे ?
प्रस्तुत पद किस भाषा में लिखी गई है ?
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वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों परयो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो।।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाँडे फिरे सब सों, पर झोपरी को कहुँ खोज न पायो।
प्रस्तुत पाठ का नाम और कवि का नाम क्या है?
➲ प्रस्तुत पाठ का नाम ‘सुदामा चरित’ और लेखक का नाम ‘नरोत्तम दास’ है।
सुदामा का मन बार-बार क्या चाह रहा था ?
➲ सुदामा का मन बारा द्वारका के सुंदरों को भवनों को देखने का चाह रहा था।
यहाँ पाँडे किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
➲ यहाँ पाँडे सुदामा के लिये प्रयुक्त हुआ है।
वैसोई राज समाज कहाँ बने थे ?
➲ वैसोई राज समाज द्वारका में बने थे।
प्रस्तुत पद किस भाषा में लिखी गई है ?
➲ प्रस्तुत पद ब्रज भाषा में लिखे गये हैं।
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