Environmental Sciences, asked by Sumitkumarprajapati, 10 months ago

विज्ञानं के दुरूपयोग से गॉन वाली समस्याएं

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Answered by nikhildixit13
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विज्ञान से हमेशा लाभ ही नहीं होता, कभी-कभी यह कुछ नुकसान भी पहुंचाता है। यह कहना शायद एक मसले का अति सरलीकरण है। न्यू साइंटिस्ट नामक विज्ञान पत्रिका में माइक्रोवेव चूल्हे के बारे में एक लेख प्रकाशित हुआ है, जो बताता है कि इसमें बने खाने से उसका एक महत्वपूर्ण तत्व नष्ट हो जाता है। पत्रिका में प्रकाशित लेख के मुताबिक स्पेन के कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने विभिन्न तरीकों से सब्जियाँ पकाईं और फिर उनमेे मौजूद पोषक तत्वों की जाँच की। इससे उन्हें पता लगा कि माइक्रोवेव चूल्हे में सब्जी बनाने से उसके एंटी ऑक्सीडेंट्स नष्ट हो जाते हैं। किसी फल या सब्जी में मौजूद ये पदार्थ शरीर की कोशिकाओं को विभिन्न तरह के रसायनों के प्रतिकूल प्रभाव से बचाते हैं, उन्हें सक्रिय और ऊर्जावान बनाते हैं और उनकी ऑक्सीजन लेने की क्षमता भी बढ़ाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, ये एंटी ऑक्सीडेंट्स शरीर की कोशिकाओं का क्षरण और बुढ़ापा भी रोकते हैं और उनका यौवन बनाए रखते हैं। स्पैनिश वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि माइक्रोवेव चूल्हे जिस पद्धति से और जितनी तेजी से खाद्य पदार्थ गर्म करते हैं, उससे उनके भीतर मौजूद ये पोषक तत्व टूट कर नष्ट हो जाते हैं। आश्चर्यजनक रूप से खाना बनाने के पारंपरिक तरीके में, जिसमें कड़ाही या देग में खाना धीरे-धीरे पकता है, ये तत्व काफी हद तक सुरक्षित रहते हैं। इसी तरह इन अध्ययनकर्ताओं ने यह भी देखा कि यदि आप सब्जियाँ काट कर या पकाने के बाद उन्हें फ्रिज में रखते हैं, तो इस प्रक्रिया में भी ज्यादा पोषक तत्व नष्ट होते हैं, जबकि साबुत सब्जी रखने में ये काफी हद तक सुरक्षित बच सकते हैं। यह कोई चौंकाने वाली जानकारी नहीं है। विज्ञान या मशीन की मदद से मनुष्य ने कई काम आसान बना लिए हैं, लेकिन इन तमाम उपकरणों से कोई एक चीज बचती है और किसी दूसरी का नुकसान हो जाता है। मशीनी चक्की के आटे से उसकी गर्मी के कारण अनेक तत्व जल जाते हैं, मिल से कुटे चावल में वैसी मिठास नहीं होती, मिक्सी में बनाई गई चटनी कभी सिल-बट्टेवाली चटनी का मुकाबला नहीं कर पाती। एयर कंडीशनर शरीर के भीतर मौजूद मौसम का मुकाबला करने की ताकत घटाते हैं। पंखा और हीटर डीहाइड्रेट करते हैं। इसमें से कई बातें तो बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के, आदमी खुद ही महसूस कर लेता है। लेकिन तब आखिर किया क्या जाए? क्योंकि इन्होंने जो सुविधा दी है, उसके अभाव में महानगरों में जीवन दुष्कर है।

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