Science, asked by Rahulmax, 1 year ago

विज्ञान और प्रौद्योगिकी,समाज उसकी संस्कृति से अलग रखती है?

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Answered by Pallavi441
3
sorry, I don't know the answer .....
Answered by Stevert
0

Answer:

Explanation:

यह एक प्रचारात्मक तथा मोहात्मक कथन है कि, ‘विश्व एक गाँव’ (ग्लोबल विलेज) है, इस कथन में हम भारतीयों को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की ध्वनि आती है, और प्रसन्न होकर हम उस विश्व-गाँव से जुड़ना चाहते हैं। इस कथन की सच्चाई को एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिये क्योंकि ‘ग्लोबल विलेज’ का वास्तविक अर्थ है, ‘‘वसुधैव आपणः’, – ‘विश्व एक बाजार है’। ‘बाजार’ से भय क्यों? क्योंकि यह बाजार खुला है। इसमें ‘बाजार’ के सिवा कोई बन्धन नहीं। आज मानव सभ्यता का स्तर यह है कि जब कुछ भी ‘खुला’ होता है तब उसमें धन या बल से शक्तिशाली ही हावी हो जाता है, जैसे मैकडानल्ड, कोला, पॉप संगीत, माइकैल जैक्सन, ‘पल्प’ साहित्य, अंग्रेजी भाषा आदि। इसी पाशविकता पर मानवीयता (संस्कृति) द्वारा नियंत्रण करना आवश्यक होता है। किन्तु जानबूझकर शक्तिप्रेमियों ने ‘धर्म’ को अफीम कहा है। खुले बाजार का आधार केवल डलर है। खुला बाजार वास्तव में वस्तुओं के विनिमय का क्षेत्र नहीं, वरन शक्ति-आजमाने का क्षेत्र है। इस शक्ति का स्रोत है, ‘प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान (‘प्रौविज्ञान’) – श्रेष्ठता’। प्रौविज्ञान-श्रेष्ठता के बल पर ‘पश्चिमी देश’, इज़रायल तथा जापान श्रेष्ठतम देश हैं। दृष्टव्य है कि लगभग बारहवीं शती तक, यह स्वतंत्र देश भारत विज्ञान तथा उद्योग में सर्वश्रेष्ठ रहा। और अब खतरा राजनैतिक गुलामी के बजाय आर्थिक गुलामी का अधिक है। आज ‘वसुधैव आपणः’ में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिये हमें ‘प्रौविज्ञान-श्रेष्ठता’ प्राप्त करना ही होगा। वरना हम ‘उनकी’ शर्त्तों पर ‘उनके’ लिये मात्र एक बाजार बन कर रह जाएंगें।

प्रौविज्ञान श्रेष्ठता अर्जित करने हेतु जो निम्नतम तथा महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं, वे हैं:

1. प्रौविज्ञान की समुचित शिक्षा

2. विचार तथा कल्पना शक्ति

3. चरित्र

4. संसाधन (मानवीय, पादार्थिक तथा आर्थिक)।

हजार वर्षों से गुलाम रहे भारत जैसे देश में प्रश्न स्वाभाविक है कि प्रौविज्ञान की शिक्षा किस भाषा में दी जाए। 1947 में तर्क दिया गया कि भारतीय भाषाओं में प्रौविज्ञान की समुचित शिक्षा देने की क्षमता नहीं है। इस के विरोध में अकाट्य तर्क दिये जा सकते हैं, वह फिर कभी। अतः प्रौविज्ञान की शिक्षा, तथा प्रशासनिक सेवाओं के चुनाव के लिये माध्यम अंग्रेजी भाषा रखा गया। जो अंग्रेजी 1835 से साम्रज्यवादियों ने हम पर लादी थी, वह स्वतंत्रता के बाद हमारी इच्छा से हमारे ऊपर शासन करने लगी। अंग्रेजी रोटी की, शासन की तथा श्रेष्ठता की भाषा रही है इसलिये इसके प्रसार-प्रचार में तथा जनस्वीकृति में, परिस्थितियेां को देखते हुए, कोई कमी नहीं रही। देखें कि इस अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा से भारत में कितनी प्रौविज्ञान – श्रेष्ठता अर्जित हुई ?

भारतीय बुद्धि की क्षमता में कमी नहीं है, तब भी, नाभिकीय ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, साफ्टवेअर आदि कुछ विषयों को छोड़कर हम सभी में पाश्चात्य संसार से दसियों वर्ष पीछे हैं। और उन विषयों में भी हम चार – पांच वर्ष पीछे ही हैं। और हम पीछे ही रहेंगे। साफ्टवेअर में भारत अधिकांशतया द्वितीयक कार्य ही करता है, मूल अनुसंधान तथा मौलिक विकास का काम ‘वहीं’ होता है। ‘परम’ टैरास्केल कम्प्यू टर बनाने में हम चीन तथा इज़रायल के भी पीछे हैं। हमारे ‘परम’ कम्प्यूटर को बाजार में सफलता नहीं मिली थी। माइक्रोसॉफ्ट ने, व्यावसायिक लाभ के लिये हिन्दी में मूल कार्य करने का बीड़ा उठाया है, तब हम, वही कार्य अपने देश के लिये क्यों नहीं कर सकते ? साफ्टवेअर में हमारा मुख्य आधार हमारा अंग्रेजी का ज्ञान कम, कम्प्यूटरी भाषा तथा प्रौविज्ञान का ज्ञान अधिक है क्योंकि यूएस में चीनी विशेषज्ञ भी साफ्टवेअर में भारतीयों के बराबर ही हैं, यद्यपि उनकी अंग्रेजी कमजोर रहती है। जापान जापानी भाषा में ही समस्त सॉफ्टवेअर के विकास की योग्यता रखता है और अब चीन भी उसी रास्ते पर है।

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