India Languages, asked by abhinav922, 1 month ago

विज्ञान और यज्ञ का संबंध स्पष्ट करो​

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Answered by jiakher84
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यज्ञ-विज्ञान का नियम है कि जब कोई पदार्थ अग्नि में डाला जाता है तो अग्नि उस पदार्थ के स्थूल रूप को तोड़कर सूक्ष्म बना देती है। इसलिए यजुर्वेद में अग्नि को 'धूरसि' कहा जाता है। महर्षियों ने इसका अर्थ दिया है कि भौतिक अग्नि पदार्थों के सूक्ष्मातिसूक्ष्म होने पर उनकी क्रियाशीलता उतनी ही बढ़ जाती है।

यज्ञ और हवन में आहुति डालते समय स्वाहा जरूरी बोला जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आहुति डालते समय स्वाहा न बोला जाए तो देवता उस आहुति को ग्रहण नहीं करते। यज्ञ और हवन से जुड़ी इस परंपरा जुड़ी कई कथाएं धर्म ग्रथों में मिलती हैं, जो इस प्रकार है… - धर्म ग्रंथों के अनुसार, अग्नि देव की पत्‍नी हैं स्‍वाहा।

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राधे कृष्णा राधे राधे

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Answered by jiakher8269
2

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यज्ञ, कर्मकांड की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है।

यज्ञ, कर्मकांड की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है।अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीता

यज्ञ, कर्मकांड की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है।अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीताअनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य:

यज्ञ, कर्मकांड की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है।अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीताअनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य:स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ 1/6 भगवत गीता

यज्ञ, कर्मकांड की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है।अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीताअनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य:स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ 1/6 भगवत गीताशरीर या देह सेवा को छोड़ देने का वरण या निश्चय करने वालों में, यज्ञ अर्थात जीव और आत्मा की क्रिया या जीव का आत्मा में विलय, मुझ परमात्मा का कार्य है।

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