विज्ञान वरदान या अभिशाप nibandh
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यद्यपि इस पृथ्वी पर मनुष्य को उत्पन्न हुए लाखों वर्ष व्यतीत हो चुके हैं , किन्तु वास्तविक वैज्ञानिक उन्नति पिछले दो – सौ वर्षों में ही हुई है ।
साहित्य में विमानों और दिव्यास्त्रों के कवित्वमय उल्लेख के अतिरिक्त कोई ऐसे प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं , जिनके आधार पर यह सिद्ध हो सके कि प्राचीनकाल में इस प्रकार की वैज्ञानिक उन्नति हुई थी ।
एक समय था , जब मनुष्य सष्टि की प्रत्येक वस्तु को कौतुहलपूर्ण व आश्चर्यजनक समझता था तथा उनसे भयभीत होकर ईश्वर की प्रार्थना करता था, किन्त आज विज्ञान ने प्रकृति को वश में करके उसे मानव की दासी बना दिया है ।
आधुनिक युग में विज्ञान के नवीन आविष्कारों ने विश्व में क्रान्ति – सी उत्पन्न कर दी है । विज्ञान के बिना मनुष्य के स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती । विज्ञान की सहायता से मनुष्य प्रकृति पर निरन्तर विजय प्राप्त करता जा रहा है ।
आज से कुछ वर्ष पूर्व विज्ञान के आविष्कारों की चर्चा से ही लोग आश्चर्यचकित हो जाया करते थे ; परन्तु आज वही आविष्कार मनुष्य के जीवन में पूर्णतया घुल – मिल गए हैं । विज्ञान ने हमें अनेक सुख – सुविधाएँ प्रदान की हैं ; किन्तु साथ ही विनाश के विविध साधन भी जुटा दिए हैं।
इस स्थिति में यह प्रश्न विचारणीय हो गया है कि विज्ञान मानव कल्याण के लिए कितना उपयोगी है ? वह समाज के लिए वरदान है या अभिशाप ?
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पिछले कुछ सालों में विज्ञान श्रेणी में अनेक रूपक बदल दिखाई देते है। मानवी जाती के बुद्धिमत्ता के वजह से आधुनिक उपकरणों की तादाद बढ़ गई है। इसलिए हम यह कह सकते है कि हम विज्ञान लोक के व्यासी है। तथा अनेक तंत्र, विज्ञान, शोध के कारण भारत देश अपनी सीमा के पार जाकर उत्क्रांति ला रहा है।
आजकल, जैसे जैसे समय बीत रहा है वैसे वैसे आधुनिकता बढ़ रही है। दैनिक जीवन में इस उपकरणों के सिवा रोजकल के काम सफल नहीं हो पाते। उदर्नाथ मोबाइल फोन का इस्तमाल इस काल में जरूरी हो चुका है और उसके बिना काम अधूरे ही रहते है। संगणक नहीं होगा तो ऑफिस /डाक के काम पूरे नहीं हो पाते क्युकी पूरे काम उसी पर किए जाते है। तथा अभी भारत देश भी अंतरिक्ष में चंद्रयान २ ऐसे अनेक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम
निभ रहा है।
इस सभी उदर्नार्थ को देखते हुए यह कहना उचित है कि विज्ञान मानव जाती के लिए वरदान से कम नहीं ।
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