Hindi, asked by Anonymous, 2 months ago

विज्ञापन का जीवन पर प्रभाव​

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औद्योगिकीकरण आज विकास का पर्याय बन गया है। उत्पादन बढ़ने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि उत्पादित वस्तुओ को उपभोक्ता तक पहुँचाया ही नहीं जाय बल्कि उसे उस वस्तु की जानकारी की दी जाय। वस्तुतः मनुष्य को जिन वस्तुओ की आवश्यकता होती है व उन्हें तलाश ही लेता इसके ठीक विपरीत उसे जिसकी जरूरत नहीं होती वह उसके बारे में सुनकर अपना समय खराब नहीं करना चाहता। इस अर्थ में विज्ञापन वस्तुओ को ऐसे लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है जो यह मान चुके होते है कि उन वस्तुओं की उसे कोई जरूरत नहीं है। आशय यह कि उत्पादित वस्तु को लोकप्रिय बनाने तथा उसकी आवश्यकता महसूस कराने का कार्य विज्ञापन करता है।

विज्ञापन अपने छोटे से संरचना में बहुत कुछ समाये होते है। आज विज्ञापन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है।

किसी भी तथ्य को यदि बार-बार लगातार दोहराया जाये तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है - यह विचार ही विज्ञापनों का आधारभूत तत्व है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते है। उदाहरण के लिए कोई भी वस्तु जब बाजार में आती है, उसके रूप - रंग - सरंचना व गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है। जिसके कारण ही उपभोक्ता को सही और गलत की पहचान होती है। इसलिए विज्ञापन हमारे लिए जरूरी है।

जहाँ तक उपभोक्ता वस्तुओं का सवाल है, विज्ञापनों का मूल उद्देश्य ग्राहको के अवचेतन मन पर छाप छोड़ जाना है और विज्ञापन इसमें सफल भी होते है। यह 'कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना' का सा अन्दाज है।

विज्ञापन सन्देश आमतौर पर प्रायोजकों द्वारा भुगतान किया है और विभिन्न माध्यमों के द्वारा देखा जाता है जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टीवी विज्ञापन, रेडियो विज्ञापन, आउटडोर विज्ञापन, ब्लॉग या वेब्साइट आदि। वाणिज्यिक विज्ञापनदाता अक्सर उपभोक्ताओं के मन में कुछ गुणों के साथ एक उत्पाद का नाम या छवि जोड़ जाते हैं जिसे हम "ब्रान्डिग" कहते है। ब्रान्डिग उत्पाद या सेवा की बिक्री बढाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। गैर-वाणिज्यिक विज्ञापनों का उपयोग राजनीतिक दल, हित समूह, धार्मिक संगठन और सरकारी एजेंसियाँ करतीं हैं।

2015 में पूरे विश्व में विज्ञापन पर कोई 529 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये जाने का अनुमान है।

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विज्ञापन आजकल विज्ञापन का समाज में बहुत अधिक प्रभाव बढ़ गया है .सर्वत्र इसका ही बोलबाला है .इसकी दुनिया अनंत आकाश की तरह है . इसकी अपनी रचना है .यह अन्य रचनाओं की तरह समाज से कुछ लेता ही नहीं वरन बहुत कुछ देता भी है .उत्कृष्ट स्वरुप का है यह .इसकी विशेषता है कि वर्तमान के साथ -साथ भविष्य के सपनों को भी जीवन्त रखता है.अपने मनभावन कथा से सबका दिल जीत लेता है हम संसार के किसी भी कोने में चले जाएँ इसके प्रभाव से अछूते नहीं रह सकते .यह अपने मनमोहकता से सुषुप्त जिज्ञासा को भी जगाता है .हम घर में हों या बाज़ार में सर्वत्र इसका ही प्रभव दिखता है .हम बातें करते हैं तो मुख्या अंश में इसीका वर्णन होता है .श्रृंगार से लेकर जूते -चप्पल ,अनाज ,टाई,रूमाल ,पेन ,कॉपी ,दवाई ,सोना -चांदी अर्थात दुनिया कि हर वस्तु विज्ञापित हो रहा है .छोटी से छोटी आम उपयोग कि चीजें भी इससे विलग नहीं रह पाती है . इसका मुख्य उद्देश्य टी.वी. पर चित्रांकन द्वारा आसानी से उत्पाद विशेष कि जानकारी विज्ञापन से प्राप्त होता है, अपनी बात यह अत्यंत ही सहजता से कभी कथा के रूप में तो कभी हास्य -व्यंग्य के रूप में तो कभी संकेत से अभिव्यक्त कर देता है. छोटी से बड़ी बातें सरल रूप से कथाकार के सदृश दूरदर्शन , रेडियो, इन्टरनेट या अन्य साधन के माध्यम से कह देता है. यह चट्टान सदृश अपने दृढ उद्देश्य से मजबूत इरादों से निरंतर अडिग है.

इसका इतिहास पुराना है. विज्ञापन का आरंभ ५५० ईशा पूर्व हुआ था. यह सर्वप्रथम यूनान ,मिश्र और रोम में विख्यात हुआ था. इसके स्वरुप में परिवर्तन समय के साथ होता रहा है.

पहले सुचना के रूप में, सन्देश के रूप में, वस्तुओं के प्रचार- प्रसार के रूप में पोस्टर के रूप में, चित्र के रूप में विज्ञापन होता रहा है. आधुनिक युग में तो इसकी सृजनशीलता कथानक के रूप में प्रस्तुत होता है. आब तो इसकी कथाएं हैं, पात्र हैं,जिनके विविध चरित्र हैं, उनकी संवेदनाएं हैं, आदर्श स्वरुप हैं.

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