Hindi, asked by ishtyak1132, 1 year ago

विज्ञापन और हमारा जीवन पर एक Anuched लिखिए

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Answered by abhishek00001
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क़ानूनी तौर पर झूठ बोलने को विज्ञापन कहते हैं”-एच.जी.वेल्स

फिल्मों के बाद जिसने सपनों और इंसानी रिश्तों, जज़बातों के साथ साथ उसके भावनाओं को सबसे ज्यादा कैश कराने का काम किया है उसमें विज्ञापनों की एक बहुत बड़ी दुनिया है । जो निरंतर सुरसा के मुंह की भांति बढ़ता ही चला जा रहा है । टीवी, एफ़एम, रेडियो, और इंटरनेट के साथ साथ बड़े बड़े दुकानों और मौल के बाहर लगी विज्ञापनों के डिस्काउंट और सेल बोर्ड को देख कर न चाहते हुए भी उसके चक्रव्यूह में आय दिन में आम जन फँसता ही चला जा रहा है । जिस वस्तु की उसे आवश्यकता नहीं है उसे भी वह अनचाहे में खरीद ही लेता है । फ्रेंड्शिप डे, रोज़ डे, किस डे, फादर्र्स डे, मदर्स डे, टीचर्स डे, चिल्ड्रेन्स डे के साथ साथ न जाने आजकल कितने ही डे आ चुके हैं जिनको मनाने का सलीका आजकल स्टैंडर्ड लाइफ और स्टेटस सिंबल की नई परिभाषाओं को जन्म दे रहा है । इन सब के लिए गिफ्ट्स एवं कार्ड्स तो इन्हीं महंगे दुकानों के ब्राण्ड्स के ही होने चाहिए, तभी जाकर इन रिश्तों में प्यार की प्रामाणिकता आएगी जो मानों सम्बन्धों के अपनेपन होने की आईएसआई मार्का लगाती हैं । करवा चौथ और तीज जैसे पर्व त्योहार अब ग्लोबल हो गए हैं । और तो और अब तो ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया ने त्योहारों के साथ 15 अगस्त और 26 जनवरी को अपने व्यापार का सबसे अच्छा दिन बना लिया है । इन दिनों को तो ऐसा लगता है उन्होंने सेल डे घोषित कर रखा है । प्रेमचंद पतंजलि के अनुसार- “विज्ञापन घर में- रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र, पत्रिका के माध्यम से, घर के बाहर- पोस्टर, दीवार पर लिखाई, बस में, रेल में, सड़क पर, बड़े-बड़े आकार के होर्डिंग, खेल के मैदान में, सिनेमा घर में, रेस्तरां में, और जहाँ भी आप जाइए विज्ञापन आपकी नज़रों के सामने हैं । आपके दिलों-दिमाग में हर वक्त छाए रहते हैं ।”1

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