विजय केवल लोहे घर-घर घूम
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विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम । भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम । यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि । मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि ।
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