विजय शर्मा ने इंजीनियरिंग की पढाई बेंगलुरु में की|
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अलीगढ़ के इस शख्स ने ऐसे फैलाई 'विजय ' पताका, बफे तक को लुभाया
पेटीएम के मालिक विजय शेखर शर्मा ने छोटे शहर के लोगों को भी बड़े सपने संजोने का रास्ता दिखाया है
नई दिल्ली. निवेश की दुनिया में वॉरेन बफे की जगह बेमिसाल है. यह दिग्गज निवेशक शायद ही किसी इंटरनेट कंपनी में निवेश करता है. लेकिन अब वह भारतीय कंपनी पेटीएम में बड़ा निवेश करने जा रहे हैं. आखिर क्या है पेटीएम में कि बफे जैसे निवेशक इस पर दांव लगाने से खुद को नहीं रोक सके? पेटीएम के मालिक विजय शेखर शर्मा की सफलता की कहानी में ही इस सवाल का जवाब छिपा है.
अलीगढ़ के छोटे कस्बे में जन्म
विजय शेखर शर्मा ने इस भ्रम को तोड़ा है कि उद्योग की दुनिया में नाम कमाने के लिए बड़े कारोबारी घराने में जन्म लेना जरूरी है. विजय शेखर शर्मा का जन्म अलीगढ़ जिले के छोटे से कस्बे हरदुआगंज में हुआ. विजय के सपने बड़े थे.
इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए विजय एक ही समय में एक किताब हिन्दी में और दूसरी अंग्रेजी में पढ़ते थे. 14 साल की उम्र में ही उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास कर ली थी. कम उम्र की वजह से विजय को इंजीनियरिंग में एडमीशन के लिए इंतजार करना पड़ा था. उनकी ज्यादातर शुरुआती पढ़ाई हिन्दी में हुई थी. 1994 में विजय ने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास कर ली.
हॉस्टल को बनाया पहला ऑफिस
याहू के भारत में ऑफिस खोलने और नेटस्केप के आने से नौकरियों का परिदृश्य बदल चुका था. पढ़ाई छोड़कर कंपनी खोलने वाले सिलिकॉन वैली के लोगों की सफलता की कहानियां कई युवाओं को प्रेरित कर रही थीं. शर्मा ने एक दोस्त के साथ अपनी पहली कंपनी 'एक्सएस कार्प्स' शुरू की. विजय ने अपने हॉस्टल के कमरे को ही इस कंपनी का ऑफिस बना दिया. लैंडलाइन फोन के लिए कॉलेज के बाहर एक दुकानदार का फोन नंबर दे दिया .
2005 में लगा था पहला झटका
2005 में उन्होंने अपने उद्यम के माध्यम से 8 लाख रुपये की बड़ी राशि जुटाई थी. लेकिन, उन्हें धोखाधड़ी के चलते 40 फीसदी रकम गंवानी पड़ी. विजय के मन में निराशा का भाव जागा. लेकिन वह हार मानने वाले शख्स नहीं थे. जब उन्होंने पेटीएम की मूल कंपनी वन 97 शुरू की, तो चीज बदलनी शुरू हो गईं. उन्होंने इंटरनेट-कंटेंट, विज्ञापन और वाणिज्य की तीन मूल बातें के साथ प्रयोग करना शुरू किया. लेकिन बड़ा बदलाव 2011 में आया जब विजय ने पहली बार अपने बोर्ड के सामने पेमेंट कंपनी बनाने का प्रस्ताव रखा.
बहुत कम पैसों से शुरुआत
उन्होंने 2011 में अपनी एक फीसदी हिस्सेदारी के करीब 20 लाख डॉलर (तब के मूल्य के हिसाब से) टेबल पर रख दिया. उन्होंने कहा, "यह सब आप के लिए है. उस काम को करने में कोई मजा नहीं है, जो दूसरे आपको करने के लिए कहते हैं. मजा उस काम को करने में हैं, जिसे लोग मानते हैं कि आप नहीं कर सकते हैं."
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