विजय-विटप को विकच देख, जिस दिन तुम हृदय जुड़ाओगे,
फूलों में शोणित की लाली, कभी समझ क्या पाओगे?
वह लाली हर प्रातः, क्षितिज पर आकर तुम्हें जगाएगी,
सायंकाल नमन कर माँ को, तिमिर-बीच खो जाएगी
देव करेंगे विनय, किंतु क्या स्वर्ग बीच रुक पाऊँगा,
किसी रात चुपके उल्का बन, कूद भूमि पर आऊँगा
तुम न जान पाओगे, पर, मैं रोज़ खिलूँगा इधर-उधर,
कभी फूल की पंखुड़ियाँ बन, कभी एक पत्ती बनकर।
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