* वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्ण
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your answer mate
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वृक्क नलिकाएँ वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती हैं। वृक्क नलिका के दो प्रमुख भाग-
(1) मैल्पीघियन सम्पुट तथा
(2) स्त्रावी नलिका।
1. मैल्पीघियन सम्पुट (Malpighian capsule) - इसके दो भाग होते हैं-
(i) एक प्याले के आकार का बोमैन सम्पुट (bowman's capsule) तथा
(ii) केशिकागुच्छ या ग्लोमेरूलस (glomerulus), यह बोमैन सन्मुट की गुहा में स्थित रुधिर केशिकाओं का जाल होता है।
2. स्वाती नलिका (Secretory tubule) - इसके तीन भाग होते है-
(i) समीपस्थ कुण्डलित भाग
(ii) मध्य हेनले लूप तथा
(iii) दूरस्थ कुण्डलित भाग|
केशिकागुच्छ में धमनी की जो शाखा आती है वह इससे निकलने वाली शाखा से अधिक चौडी होती है। इस प्रकार केशिकागुच्छ में अधिक रुधिर आता है, किन्तु निकल कम पाता है, अत: इसका प्लाज्मा केशिकाओं की पतली भित्ति से छन जाता है और सम्पुट में होकर नलिका में आ जाता है। यह क्रिया परानिस्यन्दन, अपोहन या डायलिसिस (ultrafiltration or dialysis) कहलाती है। छने हुए निस्यन्द में लगभग सभी कार्बनिक एवं अकार्बनिक यौगिक; जैसे-, यूरिया, यूरिक अम्ल, ग्लूकोज, ऐमीनो अम्ल आदि होते है अर्थात् रुधिर कणिकाओं तथा प्लाज्मा की प्रोटीन को छोड़कर लगभग अभी घटक उपस्थित होते है। इनकी मात्रा भी प्लाज्मा के बराबर होती है।
कोशिकागुच्छ से निकलने वाली अपवाही धमनिका 'U' के आकार की स्त्रावी नलिका के चारों ओर बार-बार विभाजित होकर केशिकाओं का जाल-सा बना लेती है। नली के अन्दर आए हुए नेक्रिक फिल्ट्रेट (तरल पदार्थ) से भोजन आदि स्त्रावी नलिका व केशिकाओं की भित्ति से होकर वापस रुधिर में आ जाता है। कुछ जल भी इस प्रकार वापस रुधिर में आता है। इस क्रिया को वरणात्मक अवशोषण कहते हैं। इस प्रकार अनावश्यक जल तथा व्यर्थ या हानिकारक पदार्थ रुधिर से नलिका के तरल में ही रह जाते है। यहीं मूत्र (urine) है जो मूत्र संग्रह नलिका से होता हुआ मूत्राशय में एकत्र होता रहता है। मूत्राशय से मूत्र समय-समय पर शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
please mark brainliest!!!!
bahut mehant se likha hai