वे कौन सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया?
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ऐसी अनेक ऐतिहासिक ताकतें थी जिन्होंने संविधान के स्वरूप को निर्धारित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जोकि इस प्रकार थीं...
- भारत के संविधान में जिस प्रजातांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी सिद्धांत को सम्मिलित किया गया है वह उसी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की देन थी जो भारत की आजादी के संदर्भ में शुरू हुआ था। इस राष्ट्रीय आंदोलन में कांग्रेस ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस के बहुत सारे सदस्य अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते थे। इनमें कुछ ईश्वरवादी थे तो कुछ धर्मनिरपेक्ष थे।
- संविधान सभा में बहुत से सदस्य आर्थिक विचारों के विषयों पर समाजवाद का समर्थन करते थे तो कुछ जमींदारी व्यवस्था का समर्थन करने वाले थे।
- अलग-अलग धर्मों एवं जातियों को प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य हेतु संविधान सभा में कुछ स्वतंत्र सदस्यों एवं महिलाओं को भी सम्मिलित किया गया था, इन सब सदस्यों ने संविधान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- संविधान का स्वरूप निर्धारित करने में संविधान में जो भी चर्चाएं होती थी उन पर जनमत का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता था। आम जनता के सुझावों को आमंत्रित किया जाता और उन सुझावों पर सामूहिक रूप से चर्चा भी होती थी। जो सुझाव उपयोगी और अधिकतर लोगों द्वारा स्वीकार्य होते थे, उनको संविधान निर्माण की प्रक्रिया में शामिल भी किया जाता था।
- जनमत के महत्व को स्पष्ट करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ‘सरकारी कागजों से नहीं बनती बल्कि सरकारें जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति होती हैं। हम ही यहां इसलिए जुटे हैं क्योंकि हमारे पास जनता की ताकत है और हम उतनी दूर तक ही जाएंगे, जितनी दूर तक लोग हमें ले जाना चाहेंगे। फिर चाहे वे किसी भी समूह अथवा पार्टी से संबंधित क्यों ना हो। इसलिए हमें भारतीय जनता की आकांक्षाओं एवं भावनाओं को हमेशा अपने जेहन में रखना चाहिए और उन्हें पूरा करने का प्रयास करते रहना चाहिये।
- प्रेस में होने वाली आलोचनाओं और प्रत्यालोचनाओं ने भी संविधान के निर्माण में एक उल्लेखनीय योगदान दिया था। संविधान में जो भी प्रस्ताव पेश किए जाते उन पर सार्वजनिक रूप से बहस होती थी।समाचार पत्रों आदि में भी उनके विषय में आलोचनाएं-प्रत्यलोचनायें आदि छपती थीं। किसी प्रस्ताव पर होने वाली आलोचना एवं प्रत्यालोचना पर बनने वाली सहमति और असहमति से संविधान के तत्व प्रभावित होते थे।
- संविधान सभा को मिलने वाले सैकड़ों सुझाव के नमूने देखने से भी पता चलता है कि परस्पर विरोधी विचारों पर गहन विचार-विमर्श करने के बाद ही संविधान निर्माता किसी निष्कर्ष पर पहुंचते थे। एक मिसाल के तौर पर यहां ऑल इंडिया वर्णाश्रम स्वराज संघ ने आग्रह किया था कि संविधान का आधार प्राचीन हिंदू ग्रंथों में उल्लेखित सिद्धांत होने चाहिए और उन्होंने मांग की कि गौ हत्या पर प्रतिबंध हो और सभी बूचड़खाने बंद कर दिए जाएं। तो वहीँ दूसरी ओर तथाकथित निचली जातियों के समूहों ने सवर्णों द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यवहार पर रोक लगाने की मांग की। इन्होंने सरकारी विभाग एवं स्थानीय निकाय वादी में जनसंख्या के आधार पर सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की मांग भी की थी।
- जो भाषायी अल्पसंख्यक थे उनकी मांग थी कि मातृभाषा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की जाए तथा भाषा के आधार पर प्रांतों का पुनर्गठन किया जाए।
- संविधान सभा के सदस्यों में अनेक सदस्य अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावशाली स्थान रखते थे। इसलिए उनके विचार एवं सुझाव संविधान के निर्माण में प्रमुख प्रभाव डालते थे। प्रसिद्ध विधिवेत्ता और एवं अर्थशास्त्री डॉ. बी आर आंबेडकर संविधान सभा के सर्वाधिक प्रभावशाली सदस्यों में से थे और संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष भी थे। इसके अलावा अन्य कई सदस्य अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ थे।
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