Social Sciences, asked by anjaliraj8861, 7 months ago

विकास के आधार पर संसाधनों के वर्गीकरण
का वर्णन कर​

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Answered by yogeshkumar9459
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Answered by Anonymous
2

Answer:

पर्यावरण में उपलब्ध सभी वस्तुएँ जिसका उपयोग हमारी आवश्यकता पूरा करने में की जा सकती है तथा उसे बनाने के लिए तकनीकि उपलब्ध है साथ ही आर्थिक रूप से संभाव्य है और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है।

अर्थात

संसाधन वह है, जो

(क) पर्यावरण में उपलब्ध सभी वस्तुएँ जिससे हमारी आवश्यकता पूरी हो सकती है

(ख) उपलब्ध वस्तु को आवश्यकता पूरी करने के अनुकूल बनाने के लिए हमारे पास आवश्यक तकनीकि उपलब्ध हो

(ग) उस उपलब्ध वस्तु को आवश्यकता पूरी करने योग्य बनाने में पूर्ण होने वाली आवश्यकता से अधिक व्यय की आवश्यकता नहीं हो। अर्थात वह आर्थिक रूप से संभाव्य हो।

(घ) वस्तु के उपयोग की सांस्कृतिक रूप से मान्यता हो।

हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वस्तु को संसाधन में बदलने की प्रक्रिया प्रकृति, प्राद्योगिकी और संस्थानों के बीच परस्पर संबंध पर निहित है तथा निर्भर करता है।

मानव प्रकृति के साथ तकनीकि के माध्यम से संबंध बनाकर संसाधन उपलब्ध कराते हैं जो कि मानव के विकास को गति देता है।

संसाधन का वर्गीकरण: संसाधनों के प्रकार

संसाधन को विभिन्न आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

(1) उत्पत्ति के आधार पर : जैव (Biotic) और अजैव (Abiotic)

(2) समाप्यता के आधार पर : नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य

(3) स्वामित्व के आधार पर : व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय

(4) विकास के स्तर के आधार पर : संभावी, विकसित भंडार और संचित कोष

(1) उत्पत्ति के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण

संसाधनों को उत्पत्ति के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है: जैव (Biotic) संसाधन एवं अजैव (Abiotic) संसाधन

(a) जैव संसाधन

हमारे पर्यावरण में उपस्थित वैसी सभी वस्तुएँ जिनमें जीवन है, को जैव संसाधन कहा जाता है। जैव संसाधन हमें जीवमंडल से मिलती हैं।

उदाहरण: मनुष्य सहित सभी प्राणि। इसके अंतर्गत मत्स्य जीव, पशुधन, मनुष्य, पक्षी आदि आते हैं।

(b) अजैव संसाधन

हमारे वातावरण में उपस्थित वैसे सभी संसाधन जिनमें जीवन व्याप्त नहीं हैं अर्थात निर्जीव हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं।

उदाहरण चट्टान, पर्वत, नदी, तालाब, समुद्र, धातुएँ, हवा, सभी गैसें, सूर्य का प्रकाश, आदि।

(2) समाप्यता के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण

समाप्यता के आधार पर हमारे वातावरण में उपस्थित सभी वस्तुओं को जो दो वर्गों में बाँटा जा सकता है: नवीकरण योग्य (Renewable) और अनवीकरण योग्य (Non-renewable)

(a) नवीकरण योग्य (Renewable) संसाधन

वैसे संसाधन जो फिर से नवीकृत किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन (Renewable Resources) कहा जाता है। जैसे सौर उर्जा, पवन उर्जा, जल, वन तथा वन्य जीव। इस संसाधनों को इनके सतत प्रवाह के कारण नवीकरण योग्य संसाधन के अंतर्गत रखा गया है।

(b) अनवीकरण योग्य संसाधन (Non Renewable Resources)

वातावरण में उपस्थित वैसी सभी वस्तुएँ, जिन्हें उपयोग के बाद नवीकृत नहीं किया जा सकता है या उनके विकास अर्थात उन्हें बनने में लाखों करोड़ों वर्ष लगते हैं, को अनवीकरण योग्य संसाधन कहा जाता है।

उदाहरण (i) जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल, कोयला, आदि। जीवाश्म ईंधन का विकास एक लम्बे भू वैज्ञानिक अंतराल में होता है। इसका अर्थ यह है कि एक बार पेट्रोल, कोयला आदि ईंधन की खपत कर लेने पर उन्हें किसी भौतिक या रासायनिक क्रिया द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: इन्हें अनवीकरण योग्य संसाधन के अंतर्गत रखा गया है।

(ii) धातु: धातु हमें खनन के द्वारा खनिज के रूप में मिलता है। हालाँकि धातु का एक बार उपयोग के बाद उन्हें फिर से प्राप्त किया जा सकता है। जैसे लोहे के एक डब्बे से पुन: लोहा प्राप्त किया जा सकता है। परंतु फिर से उसी तरह के धातु को प्राप्त करने के लिए खनन की ही आवश्यकता होती है। अत: धातुओं को भी अनवीकरण योग्य संसाधन में रखा जा सकता है।

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