Political Science, asked by kolr60871, 7 months ago

विकास के प्रकारों का वर्णन​

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Answered by khobragadejyoti496
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जीवन में प्रत्येक विभाग, प्रत्येक पक्ष चाहे वह मानव संसाधन हो, आर्थिक स्थिति हो या मूलभूत आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता हो, इन सब में सुधार हेतु विभिन्न स्तरों पर प्रयास हो रहे हैं, इस बीच कई, योजनायें लागू हुई व कई चल रही हैं, पिछले पाँच-छः दशक से इस प्रकार के प्रयासों का एक मात्र उद्देश्य रहा है, विकास करना, इस दौरान परिस्थितियों के साथ-साथ योजनाओं का स्वरूप भी बदलता रहा है।

विकास प्रक्रिया का आरम्भ

सन 1947 में हमने आजादी प्राप्त की व सरकार बनी, उस समय की अपेक्षाओं से भरे माहौल में सरकार ने अपना जो स्वरूप निर्धारित किया वह कल्याणकारी सरकार का रहा। जनता तक अधिकाधिक लाभ एवं सुविधायें पहुँचाने के लिए सरकार द्वारा समुदाय के चहुँमुखी विकास के लिए विभिन्न प्रयास प्रारम्भ किए गए, सरकार द्वारा विकास के लिए जो उचित समझा गया उस पर आधारित योजनाऐं/कार्यक्रम प्रारम्भ किये गए।

विकास प्रक्रिया के बदलते हुए स्वरूप

सन 1950-60 के दशकों में विकास कार्य मुख्यतः सरकार ने अपने ढाँचे, अपने विभागों व साधनों से किये, प्रारम्भिक सोच समुदाय के चहुमुखी विकास की रही, आगे चलकर सन 1960 उत्तरार्द्ध व सन 1970 के प्रारम्भ में यह रूप परिवर्तित होकर लक्ष्य समूह आधारित विकास हो गया, इसके अन्तर्गत लघु किसान, भूमिहीन व आदिवासी समूह के लिए योजनायें एवं कार्यक्रम चलाये गए, थोड़ा समय बीतने पर कमाण्ड एरिया डेवलपमेंट की बात प्रारम्भ हुई, एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का समग्र विकास जिसको कि पिछले कुछ वर्षों से जलागम विकास कहा जा रहा है।

विकास प्रक्रिया के प्रभाव

मानव सभ्यता के लम्बे इतिहास में विकास की बात मात्र पांच-छः दशक से ही प्रारम्भ हुई है। यही वह दौर रहा, जबकि सामाजिक-आर्थिक विकास के नाम पर ढाँचा खड़ा करने पर तथा सुविधायें उपलब्ध कराने पर अधिक जोर दिया गया। हिमालय में सड़कों की लम्बाई 50 हजार कि.मी. से अधिक पहुँच गई, कई विशाल बाँध बन गए, स्कूल खुल गए, चिकित्सालय खुल गए आदि, इस दौर के चलते विकास का भौतिक आयाम मुख्य हो गया, जिस कारण सामाजिक उत्थान की सोच आँकड़ों में सीमित होकर रह गई। कार्यक्रमों का एक मात्र ध्येय स्व-निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति रह गया। इसी बीच विकेन्द्रीकरण व्यवस्था के स्थान पर केन्द्रीकरण बढ़ा, गाँव स्तर की बात जिला स्तर व जिले स्तर की बात राज्य पर होने लगी। जंगल, पशु, औद्योगिकी, सिंचाई आदि के अलग-अलग विभाग बन गए व विभागीकरण बढ़े, साथ ही योजनाओं में क्षेत्रीय भिन्नताओं की अनदेखी हुई व सार्वभौमिकता को बढ़ावा मिला।

क्या कारण रहे

विकास प्रक्रिया का यह काल मुख्य रूप से जिस सोच से प्रभावित रहा वह था, लोग अशिक्षित हैं (लगभग 90 प्रतिशत तक जनसंख्या अशिक्षित थी), चूँकि लोग अशिक्षित हैं और वे जानकार नहीं हैं। विकास कार्यों में बौद्धिक रूप से किसी भी प्रकार का सहयोग दे पाने में सक्षम नहीं हैं, दूसरी सोच थी लोग गरीब हैं- साधन सुविधाओं से रहित लोग, साधनों आदि का सहयोग प्रदान करने में असमर्थ हैं।

विकास प्रक्रिया के परिणाम

1980 के दशक के प्रारम्भ से विभिन्न परिणाम सामने आने लगे, मुख्य परिणाम यह रहा कि बड़े स्तर पर भौतिक विकास हो जाने के उपरान्त भी आम लोगों के जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ, साथ ही जहाँ भी योजनाएँ क्रियान्वित हुई, जब-जब योजनागत ढाँचा वहाँ से उठा तो बनाया गया सम्पूर्ण तन्त्र ही ढह गया, नहरें बनी किन्तु देख रेख के अभाव में अनुपयोगी हो गई, वृक्षारोपण हुए परन्तु वन विभाग के हटते ही नष्ट हो गए, कार्यक्रमों में निरन्तरता का अभाव रहा।

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