Economy, asked by inforajeevndlm, 11 months ago

विकास केवल एक लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया के द्वारा ही संभव है?कैसे व्याख्या किजिए ?

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Answered by awww12
1

Answer:

pls translate into English

Answered by jainp
2

Answer:

आधुनिक भारत में संसदीय और राष्ट्रपति आधारित लोकतंत्र राजनीतिक पार्टियों की उपस्थिति में ही काम कर सकते हैं। संविधान के अनुसार भारत का ढांचा अर्द्धसंघीय है और सरकार का प्रारूप संसदीय है। भारतीय समाज की विविधता भरी प्रकृति और इसके सामने आने वाली समस्याओं की पेचीदगी ने राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर कई पार्टियों को जन्म दिया। आजादी के बाद पांच से अधिक दशकों तक मामूली वैचारिक अंतर वाली कई राजनीतिक पार्टियां आईं। यदि हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय आंदोलन मान लेते हैं तो हम देखते हैं कि इसमें विभिन्न हितों, वर्गों, समुदायों और जातियों का प्रतिनिधित्व था। लेकिन आजादी से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एकमात्र उद्देश्य भारत की आजादी हासिल करना था। जैसे ही वह उद्देश्य पूरा हुआ, कांग्रेस ने केंद्र तथा राज्यों में जवाबदेह सरकारें चलाने की चुनौती स्वीकार करने के लिए खुद को राजनीतिक पार्टी में बदल लिया।

भारत में तमाम सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलानल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी जैसे कुछ करश्मिाई नेताओं के कारण केंद्र में स्थिर सरकारों का लंबा दौर रहा, जिसमें इन नेताओं को लाल बहादुर शास्त्री, कामराज, चव्हाण जैसे निःस्वार्थी नेताओं का भी सहारा मिला। अब ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व गिनती के ही हैं, लेकिन “अक्षम” व्यक्ति खूब हैं, जिन्हें पेशेवर राजनेताओं का सहारा मिल रहा है।

तकरीबन 16 वर्ष तक चले जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में केंद्र तथा कई राज्यों में कांग्रेस का एकछत्र राज था। नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व और देश-विदेश में लोगों को आकर्षित करने की उनकी चुंबकीय क्षमता ने भारत को राजनीतिक हलकों में ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया, जिससे दूसरों को ईर्ष्या होती थी। नेहरू का निधन जनता और कांग्रेस पार्टी के लिए धक्का था। उस वक्त पैदा हुए शून्य को उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने काफी हद तक भर दिया। लेकिन उनके कार्यकाल में ही कांग्रेस के पतन की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में उनके समय में ही पार्टी टूट गई। कांग्रेस पार्टी के विघटन से एक पार्टी की प्रधानता वाली प्रणाली खत्म हो गई और कुकुरमुत्तों की तरह राजनीतिक पार्टियों के उगने का दौर शुरू हो गया। भारतीय राजनीति में सरकारों के ढांचे तथा कामकाज को नए आयाम देने वाली बहुदलीय व्यवस्था का उद्भव शुरू हो गया।

हमारे संविधान निर्माताओं ने कैबिनेट सरकार वाले संसदीय लोकतंत्र का ब्रिटिश मॉडल सोच-समझकर अपनाया था क्योंकि सामूहिक जिम्मेदारी के विचार के कारण वह भारत के लिए सबसे अनुकूल था। लोक

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