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जलवायु कई कारणों से हुआ है, किंतु वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के निरंतर बढ़ते रहने को सबसे बड़ा कारण माना जाता है| पृथ्वी पर आने वाली और सौर ऊर्जा की बड़ी मात्रा अवरक्त किरणों के रूप में पृथ्वी के वातावरण से बाहर चली जाती है| इस ऊर्जा की कुछ मात्रा ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित होकर पुन: पृथ्वी पर पहुंच जाती है, जिससे तापक्रम अनुकूल बना रहता है| ग्रीन हाउस गैसों में मीथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि है| वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का अच्छा होना है, किंतु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है, तो तापमान में वृद्धि होने लगती है| वृक्षारोपण के माध्यम से इस समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है|
मनुष्य अपने विकास के लिए पेड़ों की कटाई एवं पर्यावरण का दोहन करता है| विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पूरक है| संतुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा| हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वास्थ्य प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है| विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग आवश्यक है, किंतु ऐसा करते समय हमें सतत विकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना चाहिए| सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो| यही कारण है कि सतत विकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरंतर चलता रहता है| सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहें| सतत विकास में आर्थिक समानता, लैंगिक समानता एवं सामाजिक समानता के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन भी निहित है|
जलवायु कई कारणों से हुआ है, किंतु वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के निरंतर बढ़ते रहने को सबसे बड़ा कारण माना जाता है| पृथ्वी पर आने वाली और सौर ऊर्जा की बड़ी मात्रा अवरक्त किरणों के रूप में पृथ्वी के वातावरण से बाहर चली जाती है| इस ऊर्जा की कुछ मात्रा ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित होकर पुन: पृथ्वी पर पहुंच जाती है, जिससे तापक्रम अनुकूल बना रहता है| ग्रीन हाउस गैसों में मीथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि है| वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का अच्छा होना है, किंतु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है, तो तापमान में वृद्धि होने लगती है| वृक्षारोपण के माध्यम से इस समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है|
मनुष्य अपने विकास के लिए पेड़ों की कटाई एवं पर्यावरण का दोहन करता है| विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पूरक है| संतुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा| हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वास्थ्य प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है| विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग आवश्यक है, किंतु ऐसा करते समय हमें सतत विकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना चाहिए| सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो| यही कारण है कि सतत विकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरंतर चलता रहता है| सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहें| सतत विकास में आर्थिक समानता, लैंगिक समानता एवं सामाजिक समानता के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन भी निहित है|
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