वृक्ष की आत्मकथा पर निबंध 150 शब्द के
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मै कुछ दिनो तक धरती पर यू ही पडा रहा और धूल मे इधर उधर भटकता रहा| कुछ दिनो बाद वृषा का मौसम आया तो बारिश हुई ,बारिश के कुछ समय बाद मै बीज के दीवारो को तोडकर बाहर निकला और इस दुनिया को देखा मै उस समय बहुत ही कोमल था किसी के तोडा सा हाथ लगाने से मै टूट सकता था| जब मै छोटा था तब छोटी सी आहट से ही मुझे डर लगता था मुझे ऐसा लगता था की कोई पशु -पक्षी या फिर इसान मुझे तोड ना ले या फिर अपने पैरो के नीचे कुचल ना दे| लेकिन सक्षय बीतता गया और मै धीरे-धीरे बडा होता गया|
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